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यूजीसी से दिव्यांग (दृष्टिहीन ) शिक्षकों का रीडर अलाउंस बढ़ाने की फोरम ने मांग की ।

दृष्टिहीन शिक्षकों के लिए आज तक लागू नहीं हुआ सातवें वेतन आयोग के अनुसार रीडर अलाउंस

 
 
 नई दिल्ली: फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) के चेयरमैन प्रोफेसर एम.जगदेश कुमार  को पत्र लिखकर दिल्ली विश्वविद्यालय के दृष्टिहीन शिक्षकों ( ब्लाइंड टीचर ) का रीडर अलाउंस सातवें वेतन आयोग के अनुसार बढ़ाए जाने की मांग की है । यूजीसी की ओर से इन दृष्टिहीन शिक्षकों को एक साल में 36 हजार रुपये रीडर अलाउंस दिया जाता है यानी प्रति महीने 3 हजार रुपये । वर्तमान में दिया जाने वाला रीडर अलाउंस बहुत ही कम है । यह रीडर अलाउंस केवल स्थायी शिक्षकों को ही दिया जाता है जबकि वर्षो से दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में दृष्टिहीन एडहॉक टीचर्स भी पढ़ा रहे है उन्हें भी रीडर अलाउंस दिए जाने की मांग दोहराई है । साथ ही यह रीडर अलाउंस तीन महीने का एक साथ दिया जाए ,अभी अप्रैल से मार्च तक एक साथ यह रीडर अलाउंस दिया जाता है ।
 
                    फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने यूजीसी चेयरमैन को लिखे पत्र में बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध विभिन्न विभागों व कॉलेजों में लगभग 100 दृष्टिहीन स्थायी शिक्षक है । इन दृष्टिहीन शिक्षकों को पिछले एक दशक से सालाना रीडर अलाउंस 36 हजार रुपये मिल रहा है जबकि इस अवधि में हर वस्तु की कीमत कई गुणा बढ़ी है । उनका कहना है कि सातवें वेतन आयोग के बाद जहां अतिथि शिक्षक को हर महीने 25 हजार रुपये दिया जाता था लेकिन फरवरी 2019 से अतिथि शिक्षकों का वेतन 25 हजार से बढ़ाकर अधिकतम 50 हजार रुपये किया गया है । लेकिन यूजीसी ने दृष्टिहीन शिक्षकों का रीडर अलाउंस आज तक नहीं बढ़ाया । जबकि सातवां वेतन आयोग लागू हुए छह साल हो चुके है । उन्होंने यह भी चिंता जताई है कि यह रीडर अलाउंस साल में एक बार अप्रैल से मार्च के बीच आता है । उनका कहना है कि कोई भी दृष्टिहीन शिक्षकों को पढ़ाने वाला रीडर  सालभर तक रीडर अलाउंस का इंतजार नहीं करता । 
 
                        डॉ.सुमन ने बताया है कि ये दृष्टिहीन शिक्षक  रीडर की मदद से पुस्तकों को रिकॉर्ड करके अध्ययन सामग्री को एकत्रित करना , रिसर्च पेपर तैयार करना ,कक्षा को पढ़ाने के लिए नोट्स बनाना , उत्तर पुस्तिकाओं की जांच कराने , प्रश्न पत्र तैयार करना , पुस्तकें खरीदना , ऑडियो-वीडियो तथा  डिवाइस आदि खरीदना है । डॉ.सुमन का कहना है कि हाल ही में वे दृष्टिहीनों के एक कार्यक्रम में गए तो उन्हें दृष्टिहीन शिक्षकों ने  बताया है कि यूनिवर्सिटी / कॉलेजों ने उन्हें जो लेपटॉप दिया हुआ है वह पुरानी टेक्नोलॉजी का है । वह इतना पुराना है कि बार-बार खराब होने पर ठीक कराना पड़ता है । जिससे बीच में उन्हें दिक्कत उठानी पड़ती है । यूनिवर्सिटी / कॉलेज डिवाइस नहीं देती वह उन्हें खुद खरीदनी पड़ती है । 
 
                   डॉ. सुमन ने यूजीसी को लिखे पत्र में चेयरमैन से यह भी  मांग की है कि इन दृष्टिहीन शिक्षकों का रीडर अलाउंस  36000 रुपये की वार्षिक राशि से बढ़ाकर कम से कम तीन गुणा किया जाए यानी उन्हें सालाना एक लाख रुपये करने की मांग की है । उनका कहना है कि एक स्नातकोत्तर रीडर पूरे दिन काम करता है और उसे बदले में महीने में तीन हजार रुपये व साल के 36 हजार रुपये मिलते है जो कि बहुत कम है । उन्होंने बताया है कि एक मजदूर भी प्रति दिन 500 रुपये या उससे अधिक  मजदूरी लेता है । इसलिए कम से कम एक लाख रुपये सालाना रीडर अलाउंस दिया जाए क्योंकि इतनी कम राशि में कोई भी स्नातकोत्तर छात्र / शोधार्थी पढ़ाने नहीं आता । उन्होंने यूजीसी से नई शिक्षा नीति के अनुसार कॉलेजों की लाइब्रेरी  ( पुस्तकालय ) में शिक्षकों व छात्रों को पाठ्यक्रम के अनुसार ब्रेललिपि में पुस्तकें मंगवाने के लिए अलग से राशि दिए जाने की मांग की है । 

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