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हकेवि में विशेषज्ञ व्याख्यान आयोजित

-दोहान व्याख्यानमाला के अंतर्गत हिंदी विभाग में प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने किया संबोधित

हकेवि आयोजित व्याख्यान में प्रतिभागियों को संबोधित करते प्रो. गिरीश्वर मिश्र

 

  • -दोहान व्याख्यानमाला के अंतर्गत हिंदी विभाग में प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने किया संबोधित

महेंद्रगढ़  : हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के हिंदी विभाग में दोहान व्याख्यानमाला के तत्त्वावधान में साहित्य और मनोविज्ञान विषय पर विस्तार व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध शिक्षाविद्,  मनोविज्ञान विशेषज्ञ व महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा  के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने सर्वप्रथम साहित्य की उत्पत्ति के विषय में बताते हुए कहा कि सृजन की पृष्ठभूमि में संवेग ही होते हैं इस संदर्भ में वे उद्धृत करते हैं ‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः’ अर्थात् वेदना से ही साहित्य की उत्पत्ति हुई है। साहित्य और मनोविज्ञान का अंतर सम्बन्ध बताते हुए कहा कि सृजन की प्रक्रिया में साहित्य और मनोविज्ञान दोनों एकरूपी होते हैं, साथ ही अपने संभाषण में साहित्य के बदलते हुए रूप की चर्चा की। विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने अपने संदेश के माध्यम से इस तरह के आयोजनों को विद्यार्थियों, शोधार्थियों व शिक्षकों के लिए उपयोगी बताया।

प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने हिंदी के भाषिक रूप की गरिमा को बनाए रखते हुए अच्छी हिंदी के प्रयोग पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति हमारी दृष्टि व्यापक होनी चाहिए। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम हिंदी भाषा तक ही सीमित न रह कर अन्य भारतीय भाषाओं को भी ग्राह्य करें। साहित्य में अनुवाद के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रो. मिश्र ने बताया कि किस प्रकार अनुवाद ज्ञान समृद्धि का साधन बन सकता है। प्रो. मिश्र ने शोधार्थियों को भी अपने शोध कार्य के लिए नवीन दृष्टि अपनाने के लिए कहा तथा बताया कि साहित्य जीवन का स्पंदन है इसलिए हमें वैचारिक परिवर्तनों के प्रति सरोकार रखना चाहिए। इससे पूर्व कार्यक्रम संचालक सह आचार्य डॉ. कामराज सिंधु ने सर्वप्रथम मुख्य वक्ता का अभिनन्दन कर उनका सारगर्भित परिचय दिया एवम् कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीर पाल सिंह यादव ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हमें इतिहास बताता है कि जीवन क्या था, कैसे विकसित हुआ, और दर्शन बताता है कि जीवन क्या है। साहित्य बताता है कि जीवन क्या होना चाहिए। साथ ही अंतरानुशासनिक दृष्टिकोण अपनाने की बात की। जिससे भाषाओं और ज्ञान के विस्तार के साथ साथ व्यक्तित्व का परिमार्जन होता है। उन्होंने कहा कि साहित्य मन की ही उपज है तथा इसी कारण मनोविज्ञान से भी स्वतः ही जुड़ जाता है और साथ ही साहित्य और मनोविज्ञान के इस गहन संबंध की प्रतिपुष्टि की। विभाग की सह आचार्य डॉ. कमलेश कुमारी ने प्रो. गिरीश्वर मिश्र का बहुमूल्य समय एवम् श्रोताओं की ज्ञान वृद्धि के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ. अरविंद सिंह तेजावत, डॉ. अमित कुमार, डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय, डॉ. रीना स्वामी सहित विभाग के शोधार्थी एवम्  विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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