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संस्कृति को खोये बिना प्राप्त करनी है समृद्धि : कानिटकर

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में ईशान मंथन समारोह का आयोजन

 

  • यूरोप से भी दसगुना अधिक वस्त्र विन्यास भारत के अकेले पूर्वोत्तर के राज्यों में : सच्चिदानंद जोशी
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में ईशान मंथन समारोह का आयोजन

 

नई दिल्ली। भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन सचिव मुकुल कानिटकर ने कहा है कि आज हमें अपनी संस्कृति को खोये बिना समृद्धि प्राप्त करनी है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का 'ईशान मंथन' जैसा आयोजन से पता चलता है हमारे देश की विविधता के मूल में हमारी एकता ही है। 
         कानिटकर ने अरुणाचल प्रदेश में पूजित दुइयां देवी का उदाहरण दिया, जिनके आठ हाथों में तरह तरह के हथियार हैं। देवी का यह रूप उत्तर भारत में आस्था की केंद्र दुर्गा की ही तरह है। पूर्वोत्तर की संस्कृति, कला और जीवन पर केंद्रित तीन दिनों तक चले कार्यक्रम के अंतिम दिन आयोजन को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि ईशान यानी मंथन में सबसे पहले विष रूपी नकारात्मकता ही निकलती है और जगत कल्याण के लिए शंकर को उसे स्वयं के भी उदर में जाने से पहले गले में धारण कर नीलकंठ बनना पड़ता है। आज हमें समाज के लिए औपनिवेशिकता के विष को पहचान कर हमारी संस्कृति के मूल में बसी भावनात्मक एकता को समझना होगा।
        आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने भारत की बहुआयामी संस्कृति का विवरण दिया। उन्होंने बताया कि पूरे यूरोप से भी दसगुना अधिक वस्त्र विन्यास भारत के अकेले पूर्वोत्तर के राज्यों में ही है। कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने ब्रिटेन और फ्रांस के संग्रहालय में सुरक्षित 16वीं शताब्दी के वृंदावनी वस्त्रों के प्रति वहां के अधिकारियों की ओर से बरती जा रही सावधानियों का जिक्र किया।अपने अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृति को सुरक्षित करना सीखना होगा।  ईशान मंथन के तीसरे और अंतिम दिन रविवार को दूसरे सत्र में फिल्म 'गुरुजना' का प्रदर्शन आकर्षण का केंद्र रहा। इंदिरा गांधी कला केंद्र की ओर से निर्मित फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन ने अपने कार्य और टीम के बारे में बताया। कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने ब्रिटेन और फ्रांस के संग्रहालय में सुरक्षित 16वीं शताब्दी के वृंदावनी वस्त्रों के प्रति वहां के अधिकारियों की ओर से बरती जा रही सावधानियों का जिक्र किया।अपने अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृति को सुरक्षित करना सीखना होगा। श्रीमंत शंकर देव पर आधारित फिल्म के संदर्भ में जोशी का कहना था कि आज कभी कभी हमारे बुजुर्ग परंपराओं के मामले में व्यग्र हो उठते हैं। शंकरदेव जी ने उन विपरीत परिस्थितियों में भी भरोसा जगाया।
          इसके पहले  और बाद  में दो अलग-अलग सत्र हुए। पहले में पूर्वोत्तर, प्रकृति और चिकित्सा पर चर्चा हुई। इसमें पद्मश्री जादव पायेंग ने पौधरोपड़ के अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि अकेले के शुरू किए उनके अभियान को आज दुनिया भर का समर्थन मिल रहा है। आज इसकी जरूरत भी है, क्योंकि प्रकृति को बचाए बिना जीवन नहीं बचेगा। इस सत्र को प्रो.सुनीता रेड्डी ने भी संबोधित किया।
          महिला सशक्तिकरण से संबंधित सत्र का संचालन कला केंद्र की निदेशक प्रियंका मिश्रा (आइपीएस) ने किया। इसे प्रसिद्ध पत्रकार राखी बख्शी और  सामाजिक कार्यकर्ता रामी निरंजन देसाई ने संबोधित किया। तीनों वक्ताओं ने महिलाओं के बारे में प्रचलित धारणाओं से अलग उनके विशिष्ट कार्य पर प्रकाश डाला।
          ईशान मंथन के अंतिम दिन शाम को मेघालय की टेटसेओ सिस्टर्स का बैंड, मिजोरम का बैंबू डांस आदि आकर्षण के केंद्र में रहे। का केंद्र रहा। इंदिरा गांधी कला केंद्र की ओर से निर्मित फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन ने अपने कार्य और टीम के बारे में बताया।  श्रीमंत शंकर देव पर आधारित फिल्म के संदर्भ में जोशी का कहना था कि आज कभी कभी हमारे बुजुर्ग परंपराओं के मामले में व्यग्र हो उठते हैं। शंकरदेव जी ने उन विपरीत परिस्थितियों में भी भरोसा जगाया।
       

 

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