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जर्मन कलाकार कार्ल एलिच मूलर की लिथोग्राफ प्रदर्शनी

आईजीएनसीए के कंजर्वेशन विभाग में लगी 20 लिथोग्राफ चित्रों की प्रदर्शनी


नई दिल्ली। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में बुधवार को दुनिया के सुप्रसिद्ध कलाकारों में शुमार रहे, जर्मनी के कार्ल एलिच मूलर की लिथोग्राफ चित्रों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। आईजीएनसीए के कंजरवेशन विभाग में आयोजित प्रदर्शनी की थीम  ‘लोग और स्थान’ पर आधारित थी। 
प्रदर्शनी का शुभारंभ आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने किया। डॉ. जोशी ने प्रदर्शनी में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि, कार्ल एलिच मूलर के लिथोग्राफ बहुत ही अद्भुत और अद्धितीय हैं। सदस्य सचिव ने कहा कि, उनके लिथोग्राफ सामान्य जनमानस के जीवन को दर्शाते हैं। आज के औद्यौगिक समय में आर्ट और विजुअल आर्ट पहले से ज्यादा आसान हो गया है। डॉ. जोशी ने कहा कि सारी अभिव्यक्तियां केवल कला संसाधनों से नहीं होती हैं, अपितु वे संसाधनों के आभाव में भी हो सकती हैं। ऐसा कार्ल एलिच मूलर ने अपनी कला के प्रदर्शन से साबित करके दिखाया है। डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने कहा कि यह एक अच्छा प्रयास है और भविष्य में इस तरह की प्रदर्शनियों का आयोजन निरंतर होते रहना चाहिए। 
कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि के रूप में मौजूद प्रसिद्ध लिथोग्राफी व प्रिंट मेकिंग आर्टिस्ट दतात्रेय आप्टे ने कहा कि, आप सिर्फ किताब पढ़कर किसी भी विषय के संबंध में चित्रकला नहीं बना सकते हैं। बिना अनुभव के आप किसी किसी भी कला में अपनी रचनात्मकता को बेहतर ढंग से व्यक्त नहीं कर सकते हैं। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि, कोई भी कलाकार अपने चित्रों में जो व्यक्त करता है, उसमें वह मुख्य रूप से अपने अनुभवों को ही दिखाना चाहता है। इसके अलावा कैमरे से भी कलाकार अपने अनुभवों को ही कैप्चर करने की कोशिश करता है। विशिष्ठ अतिथि दतात्रेय आप्टे ने जोड़ा कि दरअसल कार्ल एलिच मूलर के द्वारा बनाए गए चित्रों को देखने के बाद हमें उनकी सोच के बारे में पता चलता है, क्योंकि हर कलाकार के चित्रों में उसकी सोच समाहित होती है।
इस मौके पर मौजूद आईजीएनसीए के कलानिधि विभाग के अध्यक्ष एवं डीन प्रशासन प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने अपने संबोधन में आईजीएनसीए के कंजरवेशन और आर्काईव डिपार्टमेंट की टीम को बेहतरीन प्रदर्शनी के आयोजन पर बधाई दी। प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ ने बताया कि आईजीएनसीए के कल्चरल आर्काईव डिपार्टमेंट में इस तरह की पेंटिंग के 45 से ज्यादा संग्रह उपलब्ध हैं। उन्होंने कल्चर आर्काईव डिपार्टमेंट की सराहना करते हुए कहा कि यह बहुत ही अच्छा प्रयास है, जिससे लोगों तक जानकारी पहुंचेगी।  प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने कहा कि यदि हमको इतिहास को सही रूप में जानना है तो इसमें चित्र सबसे ज्यादा मददगार होते हैं, क्योंकि चित्र कभी झूठ नहीं बोलते हैं। उन्होंने कहा कि एक इतिहासकार झूठ बोल सकता है लेकिन एक कलाकार कभी झूठ नहीं बोल सकता है।    
कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए  डॉ. कुमार संजय झा ने कहा कि, कार्ल एलिच मूलर अपने चित्रों में समाजवादी यथार्थवाद के लिए पहचाने जाते हैं। डॉ. झा ने बताया कि मूलर की प्रारंभिक पेंटिंग औपचारिक रूप से अभिव्यक्तिवाद से प्रभावित थी जो समय के साथ ड्राइंग में अधिक से अधिक जगह घेरती चली गई। उन्होंने कहा कि कार्ल एलिच मूलर ने कई बार भारत के विभिन्न राज्यों का दौरा किया। उस दौरान उनका शांति निकेतन से विशेष जुड़ाव रहा।  
इस अवसर पर संस्कृति फाउंडेशन, नई दिल्ली के न्यासी वरुण जैन सहित कई विशिष्ट जन  मौजूद रहे।

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