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डीयू कॉलेज एडमिशन के समय एससी, एसटी के छात्रों से एडमिशन फीस व ट्यूशन फ़ीस न लिए जाने की मांग

******* दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन कॉलेजों को एडमिशन व ट्यूशन फीस संबंधी सर्कुलर कॉलेजों /विभागों /डीन को जारी करे । ***** डीयू वाइस चांसलर को फोरम ने लिखा पत्र, कॉलेजों और डिपार्टमेंट, डीन को फिर से जारी करे सर्कुलर।

 

 

नई दिल्ली।  फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस ( दिल्ली विश्वविद्यालय ) के चेयरमैन डॉ.हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर योगेश कुमार सिंह   को पत्र लिखकर मांग की है कि आगामी सप्ताह  से शैक्षिक सत्र --2022--23 के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों /विभागों में अंडरग्रेजुएट व अन्य पाठ्यक्रमों में होने वाले एडमिशन के समय एससी /एसटी के छात्रों से एडमिशन फीस व ट्यूशन फीस न लिए जाने की मांग की है और उन्हें बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद ने 12 जून 1981 को दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों और कॉलेजों में प्रवेश लेने वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उन छात्रों की ट्यूशन फीस, दाखिला फ़ीस एवं अन्य फ़ीस में छूट देने का निर्णय लिया था जिनके अभिभावक आयकर दाता की श्रेणी में नहीं आते हैं। बावजूद इसके इस नियम का पालन एडमिशन के समय कोई भी कॉलेज/ विभाग नहीं करते है । सभी ऐसे छात्रों से ट्यूशन फीस, दाखिला फ़ीस आदि चार्ज करते है । कॉलेजों में बनी स्पेशल सेल, ग्रीवेंस कमेटी केवल खानापूर्ति के लिए बनी है उनके हितों में कोई काम नहीं कर रही हैं। उन्होंने यह भी मांग की है कि कॉलेजों से पिछले पांच वर्षों के आंकड़े मंगवाये जाए कि कितने कॉलेजों ने एससी/एसटी के छात्रों की एडमिशन फीस व ट्यूशन फीस माफ की है ।

                          फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की सन 1981 की विद्वत परिषद का यह निर्णय कुछ वर्षों तक कॉलेजों व विभागों ने अपने यहां लागू किया जिससे एससी/एसटी के छात्रों को इस सुविधा का लाभ भी मिला लेकिन बाद में यह योजना बंद सी हो गई। कॉलेजों ने इस योजना को कब बंद किया, क्यों किया या इस योजना के अंतर्गत इसका लाभ छात्रों द्वारा नहीं उठाया जा रहा है कोई सूचना कॉलेजों /विभागों ने विश्वविद्यालय को नहीं दी जिससे यह योजना आज भी कॉलेजों में ठप्प पड़ी है, इसे कोई देखने वाला नहीं, हर तरह के सेल बने हुए हैं लेकिन कागज़ों में ही काम कर रहे हैं। कॉलेजों ने इनके संयोजक भी बना रखें है लेकिन उनकी कोई मीटिंग नहीं बुलाई जाती ।

                डॉ. सुमन ने यह भी बताया है कि डीयू का स्पेशल सेल जो कि एससी/एसटी के छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के हितों व उनके अधिकारों के लिए समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं उपलब्ध कराता है। स्पेशल सेल को जब यह पता चला कि एससी/एसटी के छात्रों को दी जाने वाली योजनाएं ठीक से लागू नहीं हो रही है तो स्पेशल सेल ने सन 2000 में भी कॉलेजों व विभागों को पत्र भेजकर जानकारी दी थी जिसमें यह जानकारी मांगी गई थी कि संबद्ध कॉलेजों और विभागों में क्या अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों को ट्यूशन फीस, दाखिला फ़ीस में विद्वत परिषद के निर्णय के अनुसार छूट दी जा रही है या नहीं ? स्पेशल सेल यह जानकारी उपलब्ध कराने के लिए उन्हें समय दिया गया था। लेकिन क्या निर्णय हुआ , आज तक पता नहीं चला ?

                       डॉ.  हंसराज सुमन ने बताया है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी /एसटी ) के उन छात्रों के लिए जिनके अभिभावक आयकर दाता की श्रेणी में नहीं आते हैं उन छात्रों को जो विभागों/ कॉलेजों में स्नातक व स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रवेश लेते हैं तो प्रवेश के समय उनसे ट्यूशन फीस, दाखिला फ़ीस व अन्य फ़ीस में छूट दिए जाने का प्रावधान है। उन्होंने आगे बताया है कि इस छूट का लाभ देने के लिए कॉलेजों में बने स्पेशल सेल, ग्रीवेंस सेल में काम करने वाले  शिक्षकों का दायित्व बनता है कि हेल्प डेस्क के माध्यम से व वेबसाइट द्वारा शैक्षिक सत्र --2022--23 में  प्रवेश लेने वाले छात्रों को जानकारी उपलब्ध कराएं लेकिन कॉलेजों  के प्रोस्पेक्टस बन रहे है व कमेटियां बनाई जा रही है लेकिन प्रिंसिपलों द्वारा एससी /एसटी के एडमिशन तथा अन्य सुविधाओं के संदर्भ में कोई जानकारी  शिक्षकों व गैर शैक्षिक कर्मचारियों को नहीं दी जा रही । उन्होंने एससी /एसटी , ओबीसी व पीडब्ल्यूडी छात्रों को मिलने वाली सुविधाओं संबंधी प्रास्पेक्टस व गाइडलाइंस कॉलेजों से मंगवाने की भी मांग वाइस चांसलर से की है । 

                       डॉ.  सुमन ने बताया है कि एससी / एसटी के छात्रों को एडमिशन फीस , ट्यूशन फीस संबंधी एक सर्कुलर दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्पेशल सेल ने 9 सितम्बर,2015 को भी सभी विभागों के अध्यक्षों, कॉलेजों के प्राचार्यों व संकायों के डीन को भेजा। यह पत्र उस समय भेजा गया जब मैं पहली बार फरवरी 2015 में विद्वत परिषद में चुनकर आया था उसी समय विद्वत परिषद की पहली बैठक में मैंने यह मामला कुलपति और कुलसचिव के सामने उठाया था। डीयू में तुरंत संज्ञान लेते हुए 9 सितम्बर 2015 को कॉलेजों के प्राचार्यो, विभागों के अध्यक्षों व संकाय के डीन को पत्र लिखकर यह कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों की फीस में छूट दिए जाने का प्रावधान है लेकिन पिछले सात साल से इस पत्र को कोई भी कॉलेज/विभाग/संकाय गंभीरता से नहीं लेता है और हर शैक्षिक सत्र में उनसे प्रवेश के समय फ़ीस व अन्य चार्ज लिए जाते हैं।
                    डॉ. सुमन ने डीयू के कुलपति को पत्र लिखकर यह मांग की है कि जिस प्रकार से 9 सितम्बर 2015 व उसके बाद 15 जून 2018  को कॉलेजों/विभागों/संकाय डीन को पत्र भेजा गया था ठीक उसी प्रकार से शैक्षिक सत्र--2022--23  में प्रवेश लेने वाले उन छात्रों को इस सुविधा का  लाभ मिल सकें, अपनी ओर से पुनः कॉलेजों को यह निर्देश देते हुए कि उन छात्रों से एडमिशन फ़ीस , ट्यूशन फीस  व अन्य चार्ज न ले जिनके अभिभावक आयकर से छूट प्राप्त है । साथ ही उन्होंने अनुरोध किया है कि  वर्ष -2007 के बाद से ओबीसी कोटे के छात्रों को भी केंद्र सरकार की ओर से छूट दिए जाने का प्रावधान है यदि इसी तरह का पत्र ओबीसी छात्रों के लिए भी चला जाएं तो उन्हें  भी एडमिशन के समय आर्थिक रूप से मदद मिल सकती है।

          डॉ. सुमन ने कुलपति से यह भी मांग दोहराते हुए कहा है कि 9 सितम्बर  2015 व 15 जून 2018 के पत्र के आधार पर कॉलेजों से यह आंकड़े मंगवाएं जाएं कि एससी/एसटी के कितने छात्रों को कॉलेजों ने अपने यहां ट्यूशन फीस, दाखिला फ़ीस एवं अन्य चार्ज से उन्हें छूट दी गई है। साथ ही जिन कॉलेजों ने डीयू के इस सर्कुलर को लागू नहीं किया है उन कॉलेजों के विरुद्ध कार्यवाई की जाए और पुनः 2015 व 2018 के डीयू के सर्कुलर की तरह इस शैक्षिक सत्र --2022--23 में भी कॉलेजों के प्राचार्यो /विभागों/डीन को पत्र भेजे ताकि प्रवेश के समय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और ओबीसी छात्रों को आर्थिक रूप से मदद मिल सकें। उनका कहना है कि देखने में आया है कि हर साल  सैंकड़ो ऐसे छात्र प्रवेश लेना तो चाहते हैं लेकिन जिनके माता पिता की आमदनी कम होने के कारण बच्चों को पढ़ा नहीं पाते , ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी मदद अवश्य करें । 

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