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हकेवि में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन

आज केवल भारत ही नहीं अपितु पूरा विश्व भारतीय ज्ञान परंपरा की आवश्यकता महसूस कर रहा है।

  • महर्षि अरविंद विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति प्रो. एस.सी. जैन मुख्य अतिथि के रूप में हुए उपस्थित

हरियाणा :- हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ में वाणिज्य एवं प्रबंधन में भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुक्रवारको समापन हो गया। भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएसएसआर) के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी के समापन सत्र में महर्षि अरविंद विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति प्रो. एस.सी. जैन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे जबकि हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय कुलसचिव प्रो. सुनील कुमार ने विशिष्ठ अतिथि तथा विश्वविद्यालय के भौतिकी एवं खगोल भौतिकी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. सुनीता श्रीवास्तव विशेष अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की समकुलपति  प्रो. सुषमा यादव की भी गरिमामयी उपस्थिति रही।

विश्वविद्यालय के लघु सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के कुलगीत के साथ हुई। इसके पश्चात संगोष्ठी की सह-समन्वयक डॉ. दिव्या ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. एस.सी. जैन ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न पहलुओं को समाहित किया गया है। उन्होंने कहा कि एजुकेशन सिस्टम योग्य व्यक्ति बनाने के लिए शिक्षा प्रदान करती है लेकिन वह हमें आदर्श व्यक्ति नहीं बनाती। प्रो. जैन ने कहा कि प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में उच्चतम ज्ञान का प्रसार करके मानव को श्रेष्ठ संस्कारों से युक्त कर संपूर्ण मानव बनाते थे। आज केवल भारत ही नहीं अपितु पूरा विश्व भारतीय ज्ञान परंपरा की आवश्यकता महसूस कर रहा है।

इससे पूर्व समापन सत्र में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. सुनीता श्रीवास्तव ने कोविड ने आमजन को भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ने का अवसर प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि हमें नई पीढ़ी को भारतीय ज्ञान परंपरा से अवगत कराना चाहिए ताकि वे हमारी समृद्ध विरासत को जान सके। हमें युवा पीढ़ी को पारंपरिक ज्ञान से रूबरू कराना चाहिए। हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की समकुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा आधुनिक विज्ञान प्रबंधन सहित सभी क्षेत्रों के लिए एक खजाना है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में नैतिकता, आत्मनिर्भरता, अनुशासन, सत्यता और सभी के लिए सम्मान जैसे मूल्यों पर जोर देती है और आज हमें इस मूल्यों की आवश्यकता भी है। कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि प्रो. सुनील कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को सोने की चिड़िया इसलिए कहा जाता था। भारत की व्यावसायिक तकनीक सर्वश्रेष्ठ थी। उन्होंने जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें भारत में बने सामान का ही उपयोग करना चाहिए चाहे वह विदेश में बने सामान से महँगा ही क्यों न हो। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए जा रहे कदमों की भी सराहना की। संगोष्ठी की आयोजन सचिव डॉ. सुनीता तंवर ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष व संगोष्ठी के संयोजक प्रो. राजेंद्र प्रसाद मीणा ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रो. आनंद शर्मा, प्रो. आशीष माथुर, संगोष्ठी के सह संयोजक डॉ. सुमन, डॉ. रविंद्र कौर, डॉ. भूषण, और डॉ. अजय कुमार सहित विभिन्न विभागों के शिक्षक, विद्यार्थी व शोधार्थी उपस्थित रहे।

 

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