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संग्रहालयों में आपदा से निपटने के लिए तैयारी जरूरी

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के स्थापना दिवस पर आपदा जोखिम को कम करने के लिये तीन दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन


नई दिल्ली । इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के स्थापना दिवस के दूसरे दिन की शुरुआत संग्रहालयों और गैलरी में आपदा जोखिम को कम करने के प्रशिक्षण वर्कशॉप के साथ हुई। इस तीन दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन आईजीएनसीए ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) के सहयोग से किया है, जो 22 मार्च तक चलेगा।
                           वर्कशॉप के उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में आईजीएनसीए के संरक्षण प्रभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अचल पंड्या ने सभी प्रतिभागियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने मंच पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों का परिचय दिया, जिनमें श्री राजेंद्र रत्नू (आईएएस, कार्यकारी निदेशक, एनआईडीएम), श्री प्रतापानंद झा (डीन, आईजीएनसीए), डॉ. ऋचा नेगी (निदेशक, एनएमसीएम, आईजीएनसीए) और डॉ. अजिंदर वालिया (एसोसिएट प्रोफेसर और जीआईडीआरआर प्रभाग प्रमुख, एनआईडीएम) शामिल थे।
                         इसके बाद डॉ. प्रतापानंद झा ने कार्यशाला के अनूठेपन और विशिष्टता पर प्रकाश डालते हुए स्वागत भाषण दिया। उन्होंने डिजिटलीकरण के माध्यम से संपदा संरक्षण और सुरक्षा के साथ-साथ संग्रहालयों और दीर्घाओं के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डीआरआर) अभ्यासों के महत्त्व पर जोर दिया।
                         एनआईडीएम के कार्यकारी निदेशक श्री राजेंद्र रत्नू ने एनआईडीएम और डीएम (आपदा प्रबंधन) संरचना की भूमिकाओं के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने राष्ट्री य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दिशा-निर्देशों, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) और ‘सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर एक्शन’ में उल्लिखित सांस्कृतिक विरासत और डीआरआर से सम्बंधित प्रावधानों पर चर्चा की। उन्होंने सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में डीआरआर के महत्त्व को रेखांकित किया। उन्होंने आपात स्थिति के दौरान तैयारी सुनिश्चित करने के लिए नियमित प्रशिक्षण और अभ्यास की आवश्यकता पर बल दिया। सत्र के अंत में आईजीएनसीए के एनएमसीएम प्रभाग की निदेशक डॉ. ऋचा नेगी ने अतिथियों, प्रशिक्षकों और प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट किया।
                             इससे पूर्व, आईजीएनसीए के स्थापना दिवस की शुरुआत मनमोहक शास्त्रीय प्रस्तुतियों के साथ हुई। कार्यक्रम का प्रारम्भ अकाराई बहनों- एस. सुब्बलक्ष्मी और एस. स्वर्णलता के वायलिन वादन से हुआ। इसके बाद उस्ताद अमजद अली खान के छोटे सुपुत्र अयान अली बंगश ने सरोद की प्रस्तुति दी। आईजीएनसीए के उन्मुक्त एम्पीथिएटर में आयोजित दोनों प्रस्तुतियों ने समां बांध दिया। इस अवसर पर आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानन्द जोशी, प्रख्यात नृत्यांगना और राज्यसभा सदस्य पद्मविभूषण डॉ. सोनल मानसिंह, प्रख्यात नृत्यांगना और पद्मविभूषण डॉ. पद्मा सुब्रमणयम, प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजल अली खां, प्रख्यात नृत्यांगना और संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा, आईजीएनसीए की निदेशक (प्रशासन) डॉ. प्रियंका मिश्रा एवं अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे। 
                         स्थापना दिवस की पहली प्रस्तुति में अकाराई बहनों- एस. सुब्बलक्ष्मी और एस. स्वर्णलता ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत अपने दादा शुचिंद्रम श्री एस.पी. शिवसुब्रमण्यम द्वारा रचित कंपोजिशन से की। इसके बाद उन्होंने वायलिन वादन के साथ-साथ गायन प्रस्तुति भी दी। दोनों बहनों ने वायलिन वादन के साथ अपने मधुर स्वर में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की स्तुति की। इसके बाद, अकाराई बहनों ने राग कुमुदक्रिया, राग बागेश्वरी, राग बिन्दू मालिनी की सुन्दर प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपनी प्रस्तुति का समापन उन्होंने राग सिंधु भफैरवी में विश्वसरैया के भजन के साथ किया। इस प्रस्तुति में अकाराई बहनों के साथ एमवी चंद्रशेखर ने मृदंग पर संगत की, जबकि घटक पर साथ दिया एस. कृष्णा ने। 
                      इसके बाद, अयान अली बंगश ने अपनी कर्णप्रिय प्रस्तुतियों से दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने राग देश के साथ अपने वादन की शुरुआत की और समापन राग हाफ़िज़ कौंस के साथ किया। इस राग को अयान के पिता अमजद अली खां ने अपने पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खान की 25वीं पुण्यतिथि पर 1997 में बनाया था। अयान की प्रस्तुति के दौरान उनके पिता व विश्वविख्यात सरोद वादक अमजद अली खान भी उपस्थित थे और अपने पुत्र का वादन सुनकर भावविभोर हो गए। अयान के साथ तबले पर संगत की सत्यजीत सुरेश तलवलकर ने।

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