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श्री अरविंदो कॉलेज में अलग अंदाज में मनाया गया शिक्षक दिवस

श्री अरविंदो कॉलेज में अलग अंदाज में मनाया गया शिक्षक दिवस

 

* श्री अरबिंदो कॉलेज में छात्रों ने अलग अंदाज में मनाया शिक्षक दिवस ।

* कक्षाओं में छात्र बने गुरूजी और शिक्षक बने छात्र ।

 

नई दिल्ली।  शिक्षक दिवस के अवसर पर श्री अरबिंदो कॉलेज के हिन्दी विभाग के छात्रों ने सोमवार को शिक्षक दिवस को एक अलग अंदाज में मनाया । आज के दिन कक्षाओं में शिक्षकों की जगह छात्र स्वंय शिक्षक बने और शिक्षक छात्रों की भूमिका में उनकी जगह पर बैठे । छात्रों ने अनेक विषयों पर शिक्षक बनकर कक्षाएं ली । साथ ही कुछ छात्रों ने शिक्षक दिवस के अवसर पर परिचर्चाएं प्रस्तुत की । परिचर्चा का विषय -- " वर्तमान समय में शिक्षक व छात्र की भूमिका "  था । इस चर्चा में हिन्दी विभाग के अलावा अन्य विभागों के हिन्दी के छात्र भी उपस्थित थे ।

                        हिन्दी विभाग के प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन ने बताया कि आज के दिन कॉलेज के शिक्षक अपने छात्रों को उनमें आत्मविश्वास जगाने और एक बड़ी सभा को संबोधित करने की व्यवहारिकता सिखाने की छूट देते हैं । कुछ छात्र आगे चलकर भविष्य में शिक्षक बनना चाहते है जिससे उन्हें लाभ मिलता है । हिन्दी विभाग के छात्रों ने  शिक्षकों के हस्ताक्षरों का कोलाज  बनाकर लाए जिसमें सभी शिक्षकों ने अपने हस्ताक्षर किए और उनके उज्जवल भविष्य के लिए संदेश दिया। विभाग प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन , डॉ.प्रदीप कुमार सिंह , डॉ.रोशन लाल मीना , डॉ.सीमा  के अलावा जेएनयू से प्रोफेसर सुधीर प्रताप सिंह ने आकर छात्रों को अपना आशीर्वाद  दिया । उन्होंने कहा कि आज भी शिक्षकों व छात्रों के मधुर संबंध है जो हमें विरासत में अपने गुरुओं से मिले है उन्हें बचाकर रखने की आवश्यकता है । 

           हिन्दी विभाग के प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षक की भूमिका समाज में अत्यंत चुनौतीपूर्ण है जिसे छात्रों को समझना बहुत जरूरी है ताकि आगे चलकर वे स्वंय भी अच्छा शिक्षक बन सकें । सूचना क्रांति और पूंजीवाद के वर्चस्व के चलते आज शिक्षक की भूमिका एक मूल्य के  रूप में नहीं रह गई है बल्कि वह एक सेवा प्रदानकर्ता के रूप में है । डॉ.सुमन ने आगे कहा कि आज के समय में शिक्षा को खरीदा जा सकता है और बेचा जा सकता है इसलिए उसके नैतिक मूल्य की जगह बाजारू मूल्य चस्पा हो गया है इसलिए शिक्षक एक सर्विस प्रोवाइडर की तरह है ना कि मार्गदर्शक । शिक्षा के व्यवसायीकरण और उसकी पहुँच व्यापक समाज में बनाने के लिए शिक्षा के लोकतांत्रिकरण के साथ ही इसका व्यवसायीकरण भी हो गया है । यह स्वभाविक भी है किंतु ऐसे में शिक्षा का अर्थ सूचना से ज्यादा नहीं रह गया है । ज्ञान- विज्ञान की जरूरत तो है किंतु उसमें नैतिक मूल्य नहीं है जो मनुष्यता के विकास के लिए आवश्यक है ।

                   डॉ. सुमन का कहना है कि कोई भी शिक्षा यदि मानवीय नहीं है तो उसका कोई नैतिक मूल्य भी नहीं है , इसलिए शिक्षा , शिक्षक विद्यार्थी तथा समाज सबके हित में शिक्षकों के नैतिक महत्त्व को वापस स्थापित करना होगा इसलिए यह व्यापक समाज के समक्ष एक बड़ी चुनौती है जिससे निपटना सरकार से लेकर अंतिम शिक्षित मनुष्य तक की है तो आइए आज शिक्षक दिवस के अवसर पर  शपथ ले कि हम शिक्षकों और छात्रों के बीच संबंधों तथा शिक्षकों के समाज के प्रति दायित्व तथा समाज की शिक्षकों के  प्रति उत्तरदायित्व  की भूमिका को समझें और एक उच्चत्तर शिक्षित समाज का निर्माण करें।

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