हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ में समाजशास्त्र विभाग द्वारा विकास और सामाजिक परिवर्तन /@75: एक
प्रतिबिंब विषय पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन हो गया। सेमिनार के समापन सत्र में महर्षि दयानंद
विश्वविद्यालय, रोहतक की प्रो. सुप्रीति व हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के भौतिकी एवं खगोल भौतिकी विभाग की प्रो. सुनीता
श्रीवास्तव उपस्थित रहीं।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए प्रो. सुनीता श्रीवास्तव ने सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ घर के अंदर मौजूद लैंगिक असमानता
जैसी विभिन्न प्रकार की असमानताओं पर चर्चा की। उन्होंने अपने संबोधन में डिजिटल स्तर पर तथा पर्यावरण के मोर्चे पर भी
असमानता का उल्लेख किया और प्रतिभागियों को अपने स्तर पर भारत में समान सामाजिक व्यवस्था के विकास में योगदान देने के
लिए प्रेरित किया। इसी क्रम में प्रो. सुप्रीति ने अपने संबोधन में विकास और सामाजिक परिवर्तन के विषय पर बात की और बताया
कि समाजशास्त्र के विभिन्न विद्वानों ने इसे कैसे देखा। उन्होंने सेमिनार में आयोजित विभिन्न सत्रों का उल्लेख करते हुए उनकी व्यापक
विषयवस्तु और भविष्य की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला। इस मौके पर प्रो. सुप्रिति और प्रो. सुनीता श्रीवास्तव ने समाजशास्त्र
विभाग के विद्यार्थियों और शिक्षकों के शैक्षणिक क्षेत्र को जीवंत और गतिशील बनाए रखने हेतु उनके प्रयासों के लिए बधाई दी।
इससे पूर्व में समापन सत्र की शुरूआत में समाजशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ. युधवीर ने अतिथियों का स्वागत किया। इसके
पश्चात विभाग की प्रभारी डॉ. टी. लोंगकोई खियाम्नियुंगन ने प्रतिभागियों के समक्ष दो दिवसीय सेमिनार की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
उन्होंने कहा कि सेमिनार में अंग्रेजी, समाजशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, योग, पत्रकारिता एवं जनसंचार आदि विभिन्न
विभागों के शिक्षकों व शोधार्थियों ने लगभग 60 पत्र प्रस्तुत किए। इस आयोजन में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली
विश्वविद्यालय, आईआईटी सहित विभिन्न शिक्षण संस्थानों से प्रतिभागी सम्मिलित हुए। सेमिनार में आयोजित विकास और महिला
सत्र की अध्यक्षता डॉ. अभिरंजन ने की। उन्होंने सेमिनार के विषय की प्रासंगिकता और भूमिका पर भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम
के अंत में विभाग की सहायक आचार्य सुश्री तन्वी भाटी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर उन्होंने विशेष रूप से इतिहास एवं
पुरातत्त्व विभाग के इतिहास विभाग से डॉ. कुलभूषण मिश्रा और समाजशास्त्र विभाग से डॉ. रीमा गिल के योगदान का भी उल्लेख
किया।
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