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शक्ति की साधना तभी पूरी हो सकेगी, जब महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी

आईजीएनसीए ने शक्ति पर्व के रूप में मनाया अंतरराष्ट्रीय महिला दिव

  • आईजीएनसीए में महिला दिवस की पूर्व संध्या पर संगोष्ठी

नई दिल्ली।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर गुरूवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद (आईजीएनसीए) ने शक्ति पर्व का आयोजन किया। इस दौरान शक्ति पर्व के रूप में आयोजित हुए महिला दिवस कार्यक्रम में अलग-अलग सत्रों में दो संगोष्ठियां आयोजित हुईं। प्रख्यात कथक नृत्यांगना और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता सुश्री नलिनि अस्थाना एवं कमलिनि अस्थाना कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं, जबकि आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अध्यक्षता की।

इस क्रम में, ‘विकसित भारत की परिकल्पना में महिला कलाकारों की भूमिका’  विषय पर पहले सत्र की संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. सच्चिदानन्द जोशी जी ने कहा, वह ऐसी कौन-कौन सी चीजें हैं, जिनसे हम भारत में मातृशक्ति की अवधारणा को मजबूत कर सकें, इस पर हम सभी को गंभीरतावूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने बताया कि यदि भविष्य में मातृशक्ति के सम्मान में कहीं कोई भी कोताही होती है, तो उसको क्षमा नहीं किया जा सकता है। इस दौरान डॉ. जोशी ने आईजीएनसीए का ही उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह से इस संस्था में आज महिलाओं की संख्या ज्यादा होने के साथ ही यहां पर महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं।

इस मौके पर आईजीएनसीए की निदेशक (प्रशासन) डॉ. प्रियंका मिश्रा ने कहा कि जहां महिला सुरक्षा रहती है, वहा पर सशक्तिकरण स्वतः आ जाता है। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उनके पहले के संस्थानों में महिलाओं के प्रति उतनी सुरक्षा नहीं होती थी, जितनी अब आईजीएनसीए में महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था है।

इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूदा पद्मश्री नलिनि अस्थाना ने कहा कि कला का साहित्य से, साहित्य का संस्कृति से, संस्कृति का समाज से और समाज का देश से बहुत अनूठा सम्बंध होता है। नलिनी अस्थाना ने कहा कि भारत को विश्वगुरू इसलिए माना जाता हैं, क्योंकि हम अपनी संस्कृति को जीते हैं, ना कि इसे केवल पुस्तकों में पढ़कर रख देते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हर स्त्री में आधा पुरूष और आधी ही स्त्री रहती है। हर कलाकार अपनी कला के माध्यम से इसी आधी स्त्री और पुरुष को अभिव्यक्त करता है। उन्होंने अपने संबोधन में आगे कहा कि संस्कृति और सभ्यता एक साथ चलते हैं। कला एक व्यक्तित्व का पुनः निर्माण करती है और आपके अंदर की कला को आपके गुरु बाहर निकालते हैं। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा, “नारी के नारीत्व को मैने भारतीय संस्कृति में देखा है।” वहीं पद्मश्री कमलिनि अस्थाना ने भी संगोष्ठी में ‘विकसित भारत की परिकल्पना में महिला कलाकारों’ की भूमिका पर अपने विचार रखे।

इस मौके पर लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्राचार्या प्रो. (डॉ.) प्रत्यूष वत्सला ने एक प्रासंगिगक प्रश्न उठाया कि विकसित भारत की परिकल्पना में इस बात की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि क्या कई पुरुषों के बीच एक अकेली युवती अपने आपको को उतना सुरक्षित महसूस करती है, जिनता उसे करना चाहिए? प्रो. प्रत्यूष वत्सला ने कहा कि हमारी शक्ति की ये साधना तभी पूरी हो सकेगी, जब महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी। महिलाएं हमेशा से हर क्षेत्र में कार्य कर करती रहीं हैं। उन्होंने महिलाओं के उत्थान की दिशा में हुए बदलावों को याद करते हुए कहा, “आज मंचों पर महिलाओं को मुख्य अतिथि के रूप में दीप प्रज्जवलित करते हुए देखती हूं, तो प्रसन्नता होती है। लेकिन अपने बचपन में तो बस मंच पर हाथ में दीप प्रज्जवलन के लिए थाली लिए खड़ी या फिर पुरस्कार लिए खड़ी महिला को देख पाती थी।”

आईजीएनसीए के कला दर्शन प्रभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. ऋचा कम्बोज ने अपने संबोधन में कहा कि नारी समाज की आदर्श शिल्पकार होती है, जबकि प्रो. नीता माथुर ने कहा कि हमारे देश की संस्कृति हमेशा से कला की पोषक रही है। उन्होंने बताया कि मध्यकाल में महिलाओं को हमारे देश में एक विशेष दर्जा प्राप्त था। दूसरे सत्र में भी वक्ताओं ने महिलाओं को भूमिका पर सारगर्भित चर्चा की।

कार्यक्रम के अंत में अनिता सूरी ने सभी अतिथियों और आंगतुकों का आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।

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