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साहित्य का लक्ष्य आनंद का सृजन करना है प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल

हकेवि में विशेषज्ञ व्याख्यान आयोजित

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के हिंदी विभाग में ’साहित्य के मूलाधार: सौंदर्य, संस्कृति और दर्शन’ विषय पर
विशेषज्ञ व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो.
रजनीश कुमार शुक्ल मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता हकेवि के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने की।
इस अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा तथा हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ के हिंदी विभागों में
समझौता ज्ञापन भी हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन व संस्कृत विभाग के छात्रों द्वारा मंगलाचरण के साथ हुआ। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर
कुमार ने प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल को पुष्प गुच्छ शाल, श्रीफल भेंट कर उनका सम्मान किया। तत्पश्चात हिंदी विभाग के अध्यक्ष ने
कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार का स्वागत शाल उड़ाकर किया। प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने व्याख्यान में कहा कि जिन साहित्यिक
अनुशासनों की बात भारतीय परम्परा में हजारों वर्षों से होती रही है, पिछले सौ वर्षों में हमने उन अनुशासनों को पूरी तरह समाप्त
कर दिया है। साहित्य और कला के माध्यम से ही मनुष्यों और पशुओं में भेद किया जाता है। हिंदी साहित्य को किसी विचारधारा में
नहीं बाँधा जा सकता। सौन्दर्य को देखने का सबका अपना-अपना नजरिया होता है। जो वस्तु हमारे लिए सुंदर है, अन्य जगह उसकी
सुन्दरता का रूप बदल जाता है। उन्होंने साहित्य को मनुष्यता के लिए अति आवश्यक बताया। सौंदर्य, संस्कृति और दर्शन के परिप्रेक्ष्य
में प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि किसी भी साहित्य का अंतिम लक्ष्य उपदेश देना नहीं, अपितु
आनंद का सृजन करना ही है। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में जीव विज्ञान से लेकर भौतिक विज्ञान तक ऐसी हजारों चीजें
हैं, जिनके माध्यम से हम सम्पूर्ण ब्रह्मांड को समझ सकते हैं इसलिए इस ज्ञान परम्परा को और अधिक जानने-समझने की आवश्यकता
है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. टंकेश्वर कुमार ने भारत की नई शिक्षा नीति का समर्थन करते हुए उसे भारतीय ज्ञान परम्परा पर
आधारित बताया। कुलपति ने कहा कि हमें भारतीय ज्ञान परम्परा को पहचानने की आवश्यकता है। जैसे पूरी दुनिया ने योग की
ताकत को पहचाना है, यह योग भारतीय ज्ञान से ही तो उपजा है। इसलिए हमें भारतीय ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए।
इससे पूर्व हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीर पाल सिंह यादव ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि हिंदी विभाग के लिए बड़े ही
सौभाग्य की बात है कि प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल विशेषज्ञ व्याख्यान के लिए उपस्थित हैं। उन्हें विश्वास है कि उनके व्याख्यान से
प्रतिभागी अवश्य ही लाभांवित होंगे। दुनिया का कोई भी साहित्य अपनी दार्शनिक उपस्थित के कारण ही कालजयी बनता है। सौंदर्य,
संस्कृति और दर्शन के अभाव में श्रेष्ठ साहित्य का सृजन नहीं हो सकता। हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय ने
मुख्य वक्ता प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का सारगर्भित परिचय दिया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. टंकेश्वर कुमार ने भारत की नई
शिक्षा नीति का समर्थन करते हुए उसे भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित बताया। कुलपति ने कहा कि हमें भारतीय ज्ञान परम्परा
को पहचानने की आवश्यकता है। जैसे पूरी दुनिया ने योग की ताकत को पहचाना है, यह योग भारतीय ज्ञान से ही तो उपजा है।
इसलिए हमें भारतीय ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन विभाग के डॉ. कामराज सिन्धु ने दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. कमलेश कुमारी के द्वारा किया गया। इस अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से
हिंदी साहित्य विभाग की अध्यक्ष प्रो. प्रीति सागर, प्रतिनिधि के तौर पर उपस्थित रहीं। प्रो. संजीव कुमार, प्रो. प्रमोद यादव, प्रो. नंद
किशोर, डॉ. अशोक कुमार, डॉ. रेनू यादव, डॉ. सुमन रानी, डॉ. अरविंद सिंह तेजावत, डॉ. अमित कुमार, डॉ. रीना स्वामी सहित
हिंदी विभाग एवं अन्य विभागों के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी भी उपस्थित रहे ।

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