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हकेवि में प्रवसन की लोक संस्कृति विषय पर व्याख्यान आयोजित

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.टंकेश्वर कुमार ने संदेश के माध्यम से इस आयोजन के लिए विभाग को बधाई देते हुए कहा कि अवश्य ही इस तरह के आयोजन से विद्यार्थियों को विषय को समझने में मदद मिलेगी।

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), मेंहद्रगढ़ में प्रवसन की लोक संस्कृति विषय पर केंद्रित विशेषज्ञ व्याख्यान का आयोजन
किया गया। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित इस व्याख्यान में डॉ.एस.आर.के.आर्ट्स कॉलेज यानम, पांडिचेरी के
डॉ. धनंजय सिंह विशेषज्ञ वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.टंकेश्वर कुमार ने संदेश के माध्यम से इस
आयोजन के लिए विभाग को बधाई देते हुए कहा कि अवश्य ही इस तरह के आयोजन से विद्यार्थियों को विषय को समझने में
मदद मिलेगी।
आयोजन की शुरूआत में कार्यक्रम की संयोजक डॉ. कमलेश कुमारी ने विषय की गंभीरता का उल्लेख करते हुए कहा कि आज
जिस प्रकार प्रवासी श्रमिक जो कि भारत से विदेश गए वे अपनी लोक संस्कृति को लेकर वहीं बस गए और उन्होंने उस लोक
संस्कृति को आज भी बचा कर रखा हुआ है। मुख्य वक्ता डॉ. धनंजय सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि विस्थापन विश्व की बड़ी
समस्या है और भारत में भी विस्थापन का एक दौर था जब मनुष्य अपनी आजीविका की तलाश में अपने अस्तित्व की रक्षा के
लिए निरंतर प्रयास कर रहा था। इस प्रक्रिया में लोग अपनी व्यक्तिगत सामाजिकता, आचार- विचार, घर परिवार, भाषा व
संस्कृति इत्यादि के साथ प्रवास करते रहे हैं । इस प्रवसन चक्र के जरिए वे लोग समुदाय, जाति, धर्म, देश- प्रदेश की संस्कृति और
सभ्यता इत्यादि को प्रभावित करते चलते हैं और कई बार उनसे प्रभावित भी होते हैं यह पारस्परिक आदान-प्रदान की निरंतर
प्रक्रिया है।
उन्होंने लोक संस्कृति पर बात करते हुए बताया कि लोक साहित्य किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं लिखा गया है वह सिर्फ़ गाया
गया है वही लोक साहित्य में दर्ज हैं लोक साहित्य मौखिक रूप में मिलता है। उन्होंने अपने संबोधन में प्रवसन की लोक संस्कृति के
विषय में विस्तार से चर्चा की। हिंदी विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम को सफल बनाने में विभागाध्यक्ष प्रो.बीर पाल सिंह
यादव ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। कार्यक्रम का संचालन विभाग के शोधार्थी रोबिन ने किया। कार्यक्रम में विभाग के सह आचार्य
डॉ.कामराज सिंधु, सहायक आचार्य डॉ. अमित कुमार, डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय, डॉ. रीना स्वामी एवम् विभाग के स्नातकोत्तर
साहित्य तथा अनुवाद के विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित रहे।

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