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भारत की संकल्पना श्रेष्ठ बने समूचा विश्व प्रो. रजनीश शुक्ल

प्रो. टंकेश्वर कुमार ने कहा भारत के इतिहास को जाने और उस पर गर्व करें हकेवि में एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ द्वारा एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ में शुक्रवार को एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ द्वारा वसुधैव कुटुम्बकम्- विचार,
वैशिष्टय एवं वर्तमान विषय पर केंद्रित एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में महात्मा
गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सामाजिक कार्यकर्ता
श्री शरद जयश्री कमलाकर चव्हाण उपस्थित रहे जबकि मुख्य वक्ता के रूप में पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहआचार्य डॉ. हरित
कुमार मीना संगोष्ठी को संबोधित किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता हकेवि के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने की।
कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्जवलन व कुलगीत के साथ हुई। इसके पश्चात एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी डॉ.
राजेंद्र प्रसाद मीना ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। मुख्य वक्ता डॉ. हरित कुमार मीना
अपने संबोधन में कहा कि हमें वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा को समझने के लिए भारत के वैदिक साहित्य को भी समझना होगा।
भारत सदैव से ही अतुल्नीय रहा है और भारत ने सदा विश्व कल्याण हेतु सभी को एक साथ जोड़ने का ही मंत्र दिया है। इसी क्रम में
श्री शरद जयश्री कमलाकर चव्हाण ने कहा कि भारतीय सभ्यता सदैव से ही अध्ययन, चिंतन व नवाचार के मोर्चे पर समृद्ध रही है।
नदी के किनारे विकसित भारतीय सभ्यता में सदैव अपनत्व का भाव देखने को मिलता है। यही परम्परागत सांस्कृतिक मूल्य वसुधैव
कुटुम्बकम् की अवधारणा के पोषक हैं। आयोजन के मुख्य अतिथि प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने संबोधन में भारतीय सभ्यता के
विकास और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत पुरातन काल से ही विश्व बंधुत्व के भाव के साथ अपनी एक अलग
पहचान स्थापित किए हुए है। नील नदी का नाम भारत से जुड़कर ही बना है। इसी तरह ज्ञात मानव इतिहास को देखें तो भारत ही
वह देश है जिसने समूचे विश्व को नई तकनीक उपलब्ध कराई। कोरोना काल का उल्लेख करते हुए प्रो. रजनीश शुक्ल ने कहा कि हमने
जिस तरह से इस संकट की घड़ी में न सिर्फ खुद को सुरक्षित व आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया बल्कि समूचे विश्व को भी इस
महामारी से बचाने हेतु मदद उपलब्ध कराई। भारतीय स्वभाव ही वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना लिए हुए हैं और हम संपूर्ण दुनिया
को श्रेष्ठ बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने मुख्य अतिथि व वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत
इतिहास को जानकर उस पर गर्व करना होगा और इसी मंत्र के साथ हम नए भारत के निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभा सकते हैं।
कुलपति ने युवाओं से इस प्रयास में सक्रिय योगदान का अनुरोध किया। आयोजन के अंत में प्रकोष्ठ के सह संयोजक डॉ. श्रीराम पाण्डे ने
सभी सहभागियों, शिक्षकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर विश्वविद्यालय की प्रथम महिला प्रो.
सुनीता श्रीवास्तव, प्रो. नंद किशोर, प्रो. बीर पाल सिंह यादव, डॉ. विद्युलता रेड्डी, डॉ. अजय कुमार, डॉ. विकास सिवाच आदि
उपस्थित रहे।

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