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सांस्कृतिक विकास परियोजनाएं अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगीः वी. सतीश, राष्ट्रीय संगठक भाजपा

पुस्तक विमोचन और चर्चा में विदेश मंत्रालय के स्टेट्स डिपार्टमेंट के ओएसडी राजदूत सी. राजशेखर (आईएफएस), आईजीएनसीए के कला निधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौर और दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर दीप्ति तनेजा ने अपने विचार प्रकट किए।

नई दिल्ली। :- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कला निधि प्रभाग ने एक उल्लेखनीय पुस्तक ‘आर्टोनॉमिक्स: ब्लेंडिंग क्रिएटिविटी टेक्नोलॉजी एंड एंटरप्रेन्योरशिप’ का लोकार्पण समारोह आयोजित किया। कार्यक्रम के दौरान पुस्तक पर सार्थक चर्चा भी हुई। पुस्तक की लेखिका डॉ. पंडीरी हर्षा भार्गवी ने इंडस स्क्रॉल प्रेस द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक के बारे में बताया, जो कला क्षेत्र में रचनात्मकता, प्रौद्योगिकी और उद्यमशीलता के गूढ़ मेल पर प्रकाश डालती है। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय संगठक श्री वी. सतीश की गरिमामयी उपस्थिति रही। पुस्तक विमोचन और चर्चा में विदेश मंत्रालय के स्टेट्स डिपार्टमेंट के ओएसडी राजदूत सी. राजशेखर (आईएफएस), आईजीएनसीए के कला निधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौर और दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर दीप्ति तनेजा ने अपने विचार प्रकट किए।

श्री वी. सतीश ने इस क्षेत्र में विमर्श की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने हजारों वर्षों तक विदेशी शासन और आक्रमण झेलने की भारत की ऐतिहासिक त्रासदी पर दुख जताया और कहा कि इसके परिणामस्वरूप एक राष्ट्र के रूप में भारत के आत्मसम्मान की हानि हुई है। कोविड के दौरान प्रधानमंत्री के ‘आत्मनिर्भरता’ पर दिए गए भाषण का उल्लेख करते हुए उन्होंने ज्ञान के अनुसंधान में स्वतंत्र दृष्टि और भारतीय ज्ञान परंपरा को बनाए रखने के महत्त्व पर प्रकाश डाला। श्री सतीश ने ‘काशी कॉरिडोर’ या ‘उज्जैन महाकाल लोक कॉरिडोर’ जैसी सांस्कृतिक विकास की परियोजनाओं पर सवाल उठाने की प्रवृत्ति पर ध्यान दिलाते हुए औपनिवेशिक चिह्नों और बौद्धिक गुलामी पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग इसके बजाय स्वास्थ्य या शिक्षा क्षेत्रों में विकास के लिए तर्क दे सकते हैं, लेकिन उन्होंने इस तर्क का खंडन किया और इन सांस्कृतिक विकास परियोजनाओं के बहुमुखी प्रभाव के बारे में बताते हुए कहा कि इससे अर्थव्यवस्था और आय सृजन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने एकपक्षीय विकास के विचार को खारिज करते हुए कृषि, अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे और संस्कृति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में समग्र विकास की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने चीजों को औपनिवेशिक काल के चश्मे से देखने की लंबे समय से चली आ रही प्रवृत्ति की ओर भी इशारा किया। उन्होंने विचार प्रक्रिया में परिवर्तन की वकालत करते हुए देशी प्रतिभा के आधार पर हर चीज के प्रसार और परिप्रेक्ष्य में बदलाव को प्रोत्साहित करने का आग्रह किया।

राजदूत सी. राजशेखर ने संस्कृति, अर्थशास्त्र और कला को आपस में जोड़ने वाली पुस्तक लिखने के लिए लेखिका को बधाई दी। उन्होंने संस्कृति के महत्त्व पर जोर देते हुए कहा कि संस्कृति यह परिभाषित करती है कि एक राष्ट्र के रूप में हम कौन हैं। उन्होंने आस्था पैदा करने में संस्कृति की भूमिका और अर्थव्यवस्था को गति देने में इसके महत्त्वपूर्ण प्रभाव पर प्रकाश डाला।

प्रोफेसर दीप्ति तनेजा ने पुस्तक के शीर्षक में 'आर्टोनॉमिक्स' शब्द के चयन की सराहना की। उन्होंने उद्यमशीलता और वित्तीय कौशल में मौजूदा कमियों पर जोर देते हुए कला और उद्यमिता के संगम के लिए एक नया शब्द दिया- ‘आर्टोप्रेन्योर’। प्रो. तनेजा ने अर्थशास्त्र के साथ रचनात्मकता के मिश्रण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि वित्त तथा अर्थव्यवस्था से युक्त कला और संस्कृति के क्षेत्र में सफलता के लिए वित्तीय कौशल, बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), जोखिम लेने की क्षमता और उद्यमिता महत्त्वपूर्ण कारक हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कला और संस्कृति क्षेत्र के व्यक्तियों को आर्थिक सिद्धांतों की मूलभूत समझ होनी चाहिए।

डॉ. हर्षा भार्गवी ने अपनी पुस्तक पर चर्चा करते हुए अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में संस्कृति और आर्थिक राजनय के अन्वेषण पर जोर दिया। उन्होंने विशेष रूप से प्रदर्शन कलाओं के कलाकारों के सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों के बारे में बात की और पेंटिंग व मूर्तिकला तथा अन्य प्रदर्शन कलाओं में सांस्कृतिक अधिकारों, बौद्धिक संपदा अधिकार और उद्यमिता के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए नूतन समाधानों की आवश्यकता पर बल दिया। भार्गवी ने एक गतिशील ‘इकोसिस्टम’ बनाने में समाज की आवश्यक भूमिका पर भी जोर दिया, जिससे कलाकारों को अपने रचनात्मक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में, स्वागत भाषण देते हुए प्रो. रमेश चंद्र गौर ने ऐसे अनूठे विषय को संबोधित करने वाली पुस्तक के लोकार्पण पर संतोष व्यक्त करते हुए विशिष्ट अतिथियों, वक्ताओं और दर्शकों का आभार व्यक्त किया। अपने उद्बोधन में उन्होंने कला और संस्कृति के दायरे में अर्थव्यवस्था के सूक्ष्म और स्थूल पहलुओं की गहराई से पड़ताल की। उन्होंने सांस्कृतिक क्षेत्र में अतिरिक्त नीतिगत उपायों की आवश्यकता पर जोर देते हुए ‘ग्लैम’ यानी गैलरीज (कला दीर्घाओं), लाइब्रेरीज (पुस्तकालयों), आर्काइव्स (अभिलेखागार) और म्यूजियम्स (संग्रहालयों) के महत्त्व के बारे में विस्तार से बताया।

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