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अमृतकाल विमर्श विकसित भारत के निर्माण हेतु महत्त्वपूर्ण प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी

इस अवसर पर प्रो. प्रमोद कुमार, प्रो. नंद किशोर, प्रो. दिनेश चहल, प्रो. गौरव सिंह, डॉ. कामराज सिंधु, डॉ. कलेश कुमारी, डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय, डॉ. रीना स्वामी, डॉ. अमित कुमार सहित भारी संख्या में शिक्षक, विद्यार्थी व शोधार्थी उपस्थित रहे।

हकेवि में अमृतकाल विमर्श के अंतर्गत विशेष व्याख्यान आयोजित

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पद्मश्री प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने किया संबोधित

 

हरियाणा :- पुरातन भारतीय ज्ञान परंपरा सदैव ही समूचे विश्व के समक्ष भारतीयों के ज्ञान का परिचायक रही है। पुरातन काल में ऐसे अनेकों उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनसे यह साबित होता है कि भारत के ज्ञान-विज्ञान के प्रभाव विश्व के विकास में रहा है। आज हम अमृतकाल विमर्श कर रहे हैं। जिसका उद्देश्य अपनी पुरातन परंपरा व विज्ञान को सहेजते हुए विकसित भारत का मार्ग प्रशस्त करना है। इस प्रयास में चिंतन की यह प्रक्रिया निर्णायक भूमिका निभाएगी। आज की युवा पीढ़ी के लिए जरूरी है कि वह इतिहास को समझते हुए भविष्य के भारत के निर्माण में योगदान दें । यह विचार पद्मश्री प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ में अमृतकाल विमर्शः विकसित भारत एट 2047 विषय पर केंद्रित व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में प्रतिभागिता करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर हकेवि के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार भी उपस्थित रहे।

विश्वविद्यालय के शिक्षक शिक्षा विभाग व छात्र कल्याण अधिष्ठाता कार्यालय द्वारा आयोजित इस विशेषज्ञ व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पद्मश्री प्रोफेसर हरमोहिंदर सिंह बेदी ने अपने संबोधन में अनेको उदाहरणों के माध्यम से भारत और उसकी ज्ञान परंपरा के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज भारत अपनी शिक्षा नीति के साथ विकास के उस पथ पर अग्रसर है जो कि विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने जा रहा है। उन्होंने स्वभाषा में चिंतन के महत्त्व का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा नीति में विशेष रूप से मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य इसी मौलिक चिंतन को बल प्रदान करना है। प्रो. बेदी ने भारतीय वेदों व पुराणों का उल्लेख करते हुए कहा कि पुरातन काल में विदेशी विशेष रूप से इनके अध्ययन हेतु भारत आते थे और उनसे अर्जित ज्ञान से विश्व स्तर पर पहचान बनाते। प्रो. बेदी ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को पाने हेतु जरूरी है कि हम भारतीय संस्कृति और उससे सबंधित ग्रंथों का अध्ययन करें और नई ऊर्जा व विश्वास के साथ भारत निर्माण की दिशा में अग्रसर हों।

इससे पूर्व में कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवल के साथ हुई। इसके पश्चात प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी की पुस्तक का विमोचन किया गया। कार्यक्रम में प्रो. बेदी के साथ उपस्थित उनकी धर्मपत्नी व राजकीय महाविद्यालय, अमृतसर, पंजाब की पूर्व प्राचार्य डॉ. गुरनाम कौर का विश्वविद्यालय की प्रथम महिला प्रो. सुनीता श्रीवास्तव ने स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया। विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने अपने संबोधन में विश्वविद्यालय स्तर पर विकसित  भारत के निर्माण हेतु आयोजित अमृतकाल विमर्श को महत्त्वपूर्ण बताया और कहा कि हम इस यात्रा में भागीदार तभी बन सकते हैं जबकि हम इस दिशा में जारी प्रयासों को स्वीकारें और उन पर गर्व करें। कुलपति ने इस मौके पर चंद्रयान-3 की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत अब ग्लोबल लीडर के रूप में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है और हम सभी को मिलकर पुरातन ज्ञान परंपरा व आधुनिक तकनीकी विकास के मेल से भारत के विकास में सक्रिय भागीदारी निभानी होगी। कार्यक्रम के दौरान मंच का संचालन शिक्षक शिक्षा विभाग की डॉ. रेनु यादव ने किया। कार्यक्रम के अंत में छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. आनंद शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर प्रो. प्रमोद कुमार, प्रो. नंद किशोर, प्रो. दिनेश चहल, प्रो. गौरव सिंह, डॉ. कामराज सिंधु, डॉ. कलेश कुमारी, डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय, डॉ. रीना स्वामी, डॉ. अमित कुमार सहित भारी संख्या में शिक्षक, विद्यार्थी व शोधार्थी उपस्थित रहे।

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