डीयू के कॉलेजों में एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने से पहले कुलपति / कुलसचिव प्रिंसिपलों से पिछले पांच वर्षों के आंकड़े मंगवाये जाए।
* कॉलेजों द्वारा एससी, एसटी, ओबीसी कोटे की सीटों पर नहीं दिया जाता एडमिशन, भेदभाव होता है कॉलेजों में आरक्षित वर्गों के साथ।
* कॉलेजों में बने एससी,एसटी,ओबीसी सेल ,ग्रीवेंस सेल इन सेल को दी जाए पावर।
नई दिल्ली। फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार सिंह व कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता को पत्र लिखकर मांग की है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में यूजी, पीजी, पीएचडी पाठ्यक्रमों में एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने से पहले पिछले पांच वर्षों के सब्जेक्ट वाइज , विज्ञान , वाणिज्य व मानविकी विषयों के आंकड़े मंगवाकर उनकी जांच करवाई जाए, पता चलेगा कि गत वर्ष कॉलेजों ने अपने यहां स्वीकृत सीटों से ज्यादा एडमिशन दिया हुआ था जबकि उसकी एवज में आरक्षित सीटों को नहीं भरा जाता । ये कॉलेज यूजीसी गाइडलाइंस और शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आरक्षण संबंधी सर्कुलर/निर्देशों का पालन नहीं करते। बता दे कि डीयू में इस बार दाखिले कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट ( सीयूईटी ) स्कोर के माध्यम से हो रहे हैं । साथ ही अंडरग्रेजुएट कोर्सेज के लिए दाखिले का शेड्यूल सोमवार 12 सितम्बर को जारी हो रहा है । वहीं अक्टूबर के अंतिम में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज के लिए सेशन शुरू व इसके अतिरिक्त पीएचडी में एडमिशन की प्रक्रिया नवम्बर से होने की संभावना जताई जा रही है ।
फोरम ने पत्र में लिखा है कि आपके संज्ञान में बहुत ही महत्वपूर्ण विषयों की ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहता है । इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत लगभग- 80 विभाग जहां स्नातकोत्तर डिग्री ,पीएचडी, सर्टिफिकेट कोर्स, डिग्री कोर्स आदि कराएं जाते हैं । इसी तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में तकरीबन 79 कॉलेज है जिनमे स्नातक, स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है । इन कॉलेजों व विभागों में हर साल स्नातक स्तर पर विज्ञान , वाणिज्य व मानविकी विषयों में 70 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं के प्रवेश होते हैं । पत्र में लिखकर बताया है कि भारत सरकार की आरक्षण नीति के अनुसार अनुसूचित जाति--15 % ,अनुसूचित जनजाति--7:5% , अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) --27 % ,के अलावा पीडब्ल्यूडी , ईडब्ल्यूएस , ईसीए , स्पोर्ट्स आदि का कोटा होता है ।
फोरम के चेयरमैन और दिल्ली यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. हंसराज सुमन ने पत्र में लिखा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में शैक्षिक सत्र--2022--23 में एडमिशन के लिए सोमवार 12 सितम्बर को इसकी पूरी गाइडलाइंस जारी की जायेगी । इसके बाद अक्टूबर में सीटें आबंटित करने के लिए काउंसलिंग होगी जिससे अलग -अलग कॉलेजों में दाखिले होंगे । डॉ. सुमन ने बताया है कि 70 हजार सीटों के अलावा कॉलेज अपने स्तर पर हर साल 10 फीसदी सीटें बढ़ा लेते हैं । बढ़ी हुई सीटों पर अधिकांश कॉलेज आरक्षित वर्गों की सीटें नहीं भरते । उन्होंने यह भी बताया है कि सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है । जो इस साल बढ़कर -- 25 फीसदी सीटों का इजाफा होगा । इस तरह से विश्वविद्यालय के आंकड़ों की माने तो लगभग 75 हजार से ज्यादा सीटों पर इस वर्ष एडमिशन होना चाहिए । उन्होंने बताया है कि प्रत्येक कॉलेज एडमिशन के समय हाई कट ऑफ लिस्ट जारी करते हैं जिससे आरक्षित श्रेणी की सीटें हर साल खाली रह जाती है। उन्होंने बताया है कि डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर आरक्षित सीटों को भरने के लिए पांचवी कट ऑफ लिस्ट के बाद स्पेशल ड्राइव चलाते है उसमें भी जो कट ऑफ जारी की जाती है मामूली छूट दी जाती है जिससे एससी, एसटी, ओबीसी कोटे की सीटें कभी पूरी नहीं भरी जाती। ये सीटें हर साल खाली रह जाती है। कॉलेज यह कहकर कि इन सीटों पर छात्र उपलब्ध नहीं है बाद में इन सीटों को सामान्य वर्गों के छात्रों में तब्दील कर देते हैं ।उनका कहना है जबकि छात्र उपलब्ध रहते है लेकिन कॉलेजों द्वारा अपनी कट ऑफ को डाउन नहीं करते , कॉलेज प्रशासन को यदि आरक्षित वर्गों के छात्रों की सीटों को भरने की मंशा होती तो कट ऑफ कम कर सीट भर सकते हैं पर वे ऐसा नहीं करते।
डॉ. सुमन ने बताया है कि यूजीसी के सख्त निर्देश है कि प्रत्येक विश्वविद्यालय /कॉलेज/ संस्थान में एससी, एसटी और ओबीसी सेल की स्थापना की जाये। इनको चलाने के लिए आरक्षित वर्गों के शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है लेकिन ये सेल कोई काम नहीं करते,केवल कागजों में कार्य कर रहे हैं । सेल में नियुक्त गए शिक्षकों का कहना है कि उन्हें किसी तरह की कोई पावर नहीं दी गई जिसके आधार पर विश्वविद्यालय को लिखा जाए । साथ ही सेल में प्रिंसिपलों द्वारा ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है जो उनके चहेते होते हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि प्रत्येक कॉलेज में आरक्षित वर्गो के शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों के लिए ग्रीवेंस सेल बनाया गया है । इस सेल का कार्य आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों के साथ होने वाले जातीय भेदभाव, नियुक्ति, पदोन्नति व प्रवेश आदि समस्याओं का समाधान समय पर कराना है । साथ ही समय-समय पर यूजीसी को आरक्षित शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों की रिपोर्ट तैयार कर यूजीसी, शिक्षा मंत्रालय को उनके आंकड़े भेजना आदि है। उनका कहना है कि यदि ग्रीवेंस सेल सही ढंग से अपनी भूमिका का निर्वाह करे तो कॉलेजों में होने वाली छात्रों के एडमिशन, शिक्षकों की अपॉइंटमेंट और प्रमोशन संबंधी कोई समस्या न हो लेकिन ये सेल प्रिंसिपलों के इशारों पर कार्य करते हैं।
डॉ.सुमन ने कुलपति को लिखे पत्र में उन्हें बताया है कि हर साल कॉलेजों द्वारा सबसे ज्यादा नियमों का उल्लंघन यहां किया जाता है । इसलिए फोरम आपसे अनुरोध और मांग करता है कि एडमिशन प्रक्रिया शुरू होने से पहले छात्रों के कॉलेजों/विभागों से आंकड़े मंगवाये। उनका कहना है कि यदि संभव हो तो डीयू कॉलेजों के लिए एक मॉनिटरिंग कमेटी गठित करे जिसमें वर्तमान विद्वत परिषद सदस्य व पूर्व सदस्यों के अलावा आरक्षित वर्ग के शिक्षकों को इस कमेटी में रखा जाए । कमेटी इन कॉलेजों का दौरा कर शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों से उनकी समस्याओं पर बातचीत करे। उन्होंने बताया है कि इन कॉलेजों में सबसे ज्यादा समस्या शिक्षकों के रोस्टर, स्थायी नियुक्ति, पदोन्नति के अलावा कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, पेंशन के अतिरिक्त छात्रों के प्रवेश संबंधी समस्या, छात्रवृत्ति का समय पर ना मिलना, रिमेडियल क्लॉसेज न लगना , सर्विस के लिए स्पेशल क्लास, स्पेशल कोचिंग एससी, एसटी के छात्रों के लिए। इनके सामने आने वाली समस्याओं पर उन छात्रों से बातचीत करे साथ ही कॉलेजों में जिन सुविधाओं का अभाव है उस पर एक रिपोर्ट तैयार करे। मोनेटरिंग कमेटी इस रिपोर्ट को यूजीसी, शिक्षा मंत्रालय एससी, एसटी कमीशन, संसदीय समिति को भेजे।इसके अलावा इस रिपोर्ट को मीडिया में सार्वजनिक करे ताकि आम आदमी को पता चल सके कि विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में किस तरह से इन वर्गों के साथ भेदभाव की नीति अपनाई जाती है।
उन्होंने पत्र में लिखा है कि फोरम आपसे यह भी मांग करता है कि यूजीसी / शिक्षा मंत्रालय द्वारा समय-समय पर केंद्र सरकार की आरक्षण नीति संबंधी सर्कुलर जारी करती है ताकि इन सुविधाओं का लाभ आरक्षित वर्गों के शिक्षकों /कर्मचारियों /छात्रों को हो इसके लिए उसे विश्वविद्यालय/कॉलेज/संस्थान को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना होता है लेकिन कोई भी कॉलेज रोस्टर, छात्रों के प्रवेश संबंधी आंकड़े, शिक्षकों के खाली पदों की संख्या , बैकलॉग पदों का ब्यौरा आदि को वेबसाइट पर नहीं डालते जबकि यूजीसी हर साल आरक्षण संबंधी जानकारी को वेबसाइट पर अपलोड़ के लिए सर्कुलर जारी करता है । यूजीसी के इन सर्कुलर को कॉलेज द्वारा अनिवार्य किया जाये ताकि इसका लाभ सभी शिक्षक, कर्मचारी और छात्र उठा सके।
Click Here for More Latest News