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आत्मनिर्भर भारत का लक्षय है, भारत के शिल्पकारों को प्रोत्साहन : रामबहादुर राय

भारत कला और शिल्प के लिए जाना जाता हैः बिमान बिहारी दास

 

नई दिल्ली, 7 अप्रैल, रविवार
 “यहां लालकिले में एक प्रयोगशाला बनी है और वह आत्मनिर्भर भारत और उन्नत भारत तथा प्रधामनंत्री के सपनों का भारत बनेगा, तो यह उसकी एक प्रयोगशाला होगी।” यह बात इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के अध्यक्ष  रामबहादुर राय ने केन्द्र के आत्मनिर्भर भारत सेंटर फॉर डिजाइन (एबीसीडी) द्वारा लाल किला परिसर में आयोजित दो दिवसीय ‘क्राफ्ट एंड डिजाइन एक्सचेंज फोरम’ के समापन सत्र में कही। समापन सत्र के मुख्य अतिथि भारत के प्रसिद्ध मूर्तिकार ‘पद्मश्री’ बिमान बिहारी दास थे। इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी और निदेशक (प्रशासन) डॉ. प्रियंका मिश्रा भी मौजूद थे। गौरतलब है कि एबीसीडी परियोजना का शुभारम्भ प्रधानमंत्री ने दिसंबर, 2023 में किया था।
रामबहादुर राय ने अपने सम्बोधन में कहा कि आयोजन स्थल से लाल किले का जितना मनोरम दृश्य दिख रहा है, आत्मनिर्भर भारत का दृश्य भी उतना ही मनोरम होगा। उन्होंने कहा, आत्मनिर्भर भारत के रास्ते में रुकावटें बहुत हैं, लोकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सपना जगाया है और मेरी दृष्टि में सपने का पैदा होना ही जरूरी है। इस संदर्भ में उन्होंने अमेरिका के मार्टिन लूथर किंग जूनियर का उदाहरण दिया, जिन्होंने कहा था- मेरा एक सपना है (आई हैव अ ड्रीम) और यह वाक्य अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष का घोष वाक्य बन गया। उन्होंने कहा, 17वीं-18वीं शताब्दी में भारत की कला बहुत समृद्ध थी। अगर हम ढाका के मलमल को याद करें, तो उसे ढाका के कारीगर बनाते थे और ऐसी हजारों चीजें थीं, जिसे हमारे यहां के कारीगर बनाते थे। उनके लिए दुनिया का बाजार उपलब्ध था। आज परिस्थियां पलट गई हैं। दुनिया के बाजार का माल भारत में खप रहा है और उसका इस्तेमाल हो रहा है। आत्मनिर्भर भारत का सपना यह है कि यहां सामान बने और अमेरिका में बिके।
इस अवसर पर भारत के प्रख्यात मूर्तिकार  बिमान बिहारी दास ने देशज कलाकारों और शिल्पकारों की बेहतरी के उद्देश्य से शुरू की गई एबीसीडी परियोजना के लिए आईजीएनसीए की सराहना करते हुए कहा कि भारत अपने कला और शिल्प के लिए जाना जाता है। आप भारत में कहीं भी चले जाइए, आपको अद्भुत कला और शिल्प के दर्शन हो जाएंगे। समापन सत्र के प्रारम्भ में डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने एबीसीडी परियोजना के बारे में बताया और कहा कि यह परियोजना किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं स्थित है और न ही यह किसी प्रकार का संग्रहालय या प्रदर्शनी है, जहां बड़ी संख्या में लोग आते हैं, बल्कि यह एक अनुभव प्रदान करने वाला केंद्र या कार्यशाला है, जो एक लगातार चलने वाली परियोजना है। हम चाहते हैं कि जो लोग यहां आएं, थोड़ी देर ठहर कर शिल्प को देखें और शिल्पकारों से बातचीत करें, उनके बारे में और उनकी कला के बारे में जाने। इस अवसर पर डॉ. जोशी ने एबीसीडी में सहभागिता निभाने वाली संस्थाओं में से तीन विजेता संस्थाओं के नामों की घोषणा भी की, जिन्हें श्री बिमान बिहारी दास और श्री रामबहादुर राय ने सम्मानित किया।
आयोजन के दूसरे दिन दिन कठपुतली कलाकार वेंकटेश और उनकी टीम ने मनमोहक कठपुतली नृत्य प्रस्तुत किया। पपेट शो की शुरुआत गणेश वंदना कठपुतली नृत्य से हुई। उसके बाद रामकथा पर आधारित लगभग आधे घंटे का कठपुतली नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गई। इसमें हनुमान जी और श्रीराम-लक्ष्मण की भेंट, हनुमान जी द्वारा लंकिनी को पराजित करने, हनुमान जी के सीता जी से मिलने, रावण द्वारा सीताजी को दुनिया भर के प्रलोभन देने आदि के दृश्यों को बहुत कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया गया।
दूसरे दिन ‘मास्टर आर्टिजंस एंड करेंट मार्केट ट्रेंड्स’ और ‘डिजाइनर्स इंगेजमेंट विद क्राफ्ट्स कम्यूनिटीज’ विषय पर दो पैनल चर्चाएं भी आयोजित हुईं। पहली पैनल चर्चा की अध्यक्षता क्राफ्ट्स म्यूजियम के निदेशक श्री सोहन झा ने की, जबकि दूसरी पैनल चर्चा की अध्यक्षता डिजाइन हैबिट के संस्थापक और निदेशक अमरदीप बहल ने की। साथ ही, ‘जीआई वेवरेज ऑफ इंडिया’ पर भी बात हुई। एबीसीडी की परियोजना निदेशक सुश्री सुप्रिया कंसल ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस आयोजन के पहले दिन उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे ‘एशियन हेरिटेज फाउंडेशन’ के संस्थापक अध्यक्ष श्री राजीव सेठी, जबकि विशिष्ट अतिथि थीं ‘किरण नादर म्यूजियम ऑफ आर्ट’ की संस्थापक सुश्री किरण नादर। श्री राजीव सेठी ने रचनात्मक अभिव्यक्ति में अधिकतम स्वतंत्रता के महत्त्व पर प्रकाश डाला। वहीं सुश्री किरण नादर ने एबीसीडी टीम को बधाई दी और कहा कि प्रोजेक्ट एबीसीडी कला के किसी भी रूप में अनूठा है। 
पहले दिन एक अनूठी चर्चा ‘चाय नाश्ताः भारत के पाक कला शिल्प’ में प्रो. पुष्पेश पंत ने चाय और नाश्ते के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। इस दो दिवसीय आयोजन के पहले दिन पैनल चर्चाएं दो विषयों पर केंद्रित थीं- ‘शिल्प के पुनरुद्धार में शिक्षा जगत की भूमिका’ और ‘शिल्प के उत्थान में डिज़ाइन हाउसों की भूमिका’।

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