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सांस्कृतिक एकात्मता के कारण राष्ट्र बनाः जस्टिस आदर्श गोयल

इंटीग्रेशन ऑफ भारतः पॉलिटिकल एंड कॉन्स्टीट्यूशनल पर्सपेक्टिव’ का लोकार्पण


नई दिल्ली, 4 अप्रैल । इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र न्यास (आईजीएनसीए) के समवेत सभागार में गुरुवार को यशराज सिंह बुंदेला द्वारा लिखित पुस्तक ‘इंटीग्रेशन ऑफ भारतः पॉलिटिकल एंड कॉन्स्टीट्यूशनल पर्सपेक्टिव’ का लोकार्पण किया गया। साथ ही, इस पुस्तक पर चर्चा सत्र का आयोजन भी किया गया। पुस्तक का प्रकाशन मोहन लॉ हाउस ने किया है। लोकार्पण और चर्चा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और विशिष्ट अतिथि भारत के महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) श्री आर. वेंकटरमनी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने की। चर्चा सत्र में जे.एस.एल. के अध्यक्ष श्री जवाहर लाल कौल, आईजीएनसीए के कला निधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष व डीन (प्रशासन) प्रो. रमेश चंद्र गौर और पुस्तक के लेखक यशराज सिंह बुंदेला ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
चर्चा के दौरान मुख्य अतिथि जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने कहा कि यह किताब हिन्दी में प्रस्तुत की जानी चाहिए, क्योंकि इसका शीर्षक है ‘इंटीग्रेशन ऑफ भारत’, हिन्दी में इसका अनुवाद होगा- ‘भारत की एकात्मता’, जो पुस्तक की भावना को और बेहतर रूप में व्यक्त करता है। उन्होंने विष्णु पुराण के श्लोक “उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।” (समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो भूमि स्थित है, उसे भारत भूमि कहते हैं और इस भूमि पर निवास करने वाले वासियों को भारतीय कहा जाता है) को उद्धृत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के विद्वान जस्टिस पी. भगवती ने इस श्लोक का उद्धरण देते हुए 1984 में प्रदीप जैन के केस में कहा था- यह इतिहास का एक रोचक तथ्य है कि भारत न तो एक साझी भाषा के कारण राष्ट्र बना, न ही इसके क्षेत्रों पर एक ही राजनीतिक शासन के निरंतर अस्तित्व के कारण बना, बल्कि सदियों से विकसित हुई साझी संस्कृति के कारण एक राष्ट्र बना। यह सांस्कृतिक एकता है, जो किसी भी अन्य बंधन से कहीं अधिक मौलिक और स्थायी है, जो किसी देश के लोगों को एकजुट कर सकती है - जिसने इस देश को एक राष्ट्र के रूप में पिरोया है।
विशिष्ट अतिथि आर. वेंकटरमनी ने कहा कि लेखक होना आसान है, लेकिन इतिहासकार होना कठिन है। उन्होंने कहा कि इतिहास जीवन के बारे में होता है, व्यक्ति के जीवन के बारे में, एक राष्ट्र के जीवन के बारे में। उन्होंने कहा, जब हम राजनीतिक और संवैधानिक एकीकरण के बारे में बात करते हैं, तो भारत को एकीकरण की किसी कहानी की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत की पूरी कहानी ही एकात्मता की कहानी है। प्रख्यात पत्रकार जवाहरलाल कौल ने कहा कि भारत केवल एक राजनीतिक इकाई नहीं है, एक आर्थिक व्यवस्था नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक अवधारणा है।
चर्चा सत्र की अध्यक्षता करते हुए श्री रामबहादुर राय ने कहा कि इस पुस्तक का दायरा बहुत विस्तृत है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में क्या खास बातें हैं। इसमें जम्मू-कश्मीर की वो कहानी है, जिसके बारे में हम सब अब तो थोड़ा-बहुत जानते ही हैं। वह कहानी खत्म होती है जम्मू-कश्मीर की उस कहानी पर, जो 5 अगस्त 2019 को घटित हुई। यह चमत्कार है भारतीय संविधान का, यह चमत्कार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था भारत में कि ये 370 ऐसे हट जाएगा।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्रो. रमेश चंद्र गौर ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और उनके प्रति आभार प्रकट किया। उन्होंने इस चर्चा की प्रस्तावना भी लोगों के समक्ष रखी।
पुस्तक के बारे में
हालांकि इस पुस्तक के शीर्षक से यह संकेत मिलता है कि यह भारत के राजनीतिक और संवैधानिक एकीकरण के बारे में है। वैसे तो यह विशुद्ध इतिहास पर आधारित पुस्तक नहीं है, लेकिन यह पुस्तक भारत के सहस्राब्दियों के इतिहास के बारे में बताती है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह पुस्तक एक राष्ट्र के रूप में, एक सभ्यता के रूप में, एक भौगोलिक इकाई के रूप में और एक शाश्वत आध्यात्मिक अस्तित्व के रूप में भारत की यात्रा के बारे में है। पुस्तक उन दार्शनिक पहलुओं या मौलिक विचार या सोच की खोज से शुरू होती है, जो इस राष्ट्र को एक सूत्र में बांधती है। यह हमें यह सोचने का कारण देता है कि विदेशी भूमि से होने वाले सबसे भीषण हमलों के बाद भी यह देश हजारों वर्षों तक जीवित क्यों रहा। इसका कारण यह है कि तमाम विदेशी आक्रमणों के बाद भी ‘एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति’ (सत्य एक है, जिसे बुद्धिमान विभिन्न नामों से बुलाते हैं) और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ (पूरी पृथ्वी एक परिवार है) में भारत का विश्वास अक्षुण्ण रहा।

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