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बिना इनोवेशन, कठिन है आत्म निर्भर भारत का सफर

केसीसी इंस्टिट्यूट ऑफ लीगल एंड हायर एजुकेशन (KCCILHE) और नाइजीरिया की नाइल यूनिवर्सिटी के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन **************इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में इंडस्ट्री के दिग्गजों ने बताई देसी मैन्यूफैक्चरिंग की हकीकत

 

ग्रेटर नोएडा । वोकल फॉर लोकल और मेक इन इंडिया के बैनर तले आत्म निर्भर भारत अभियान सही मायनों में तभी हकीकत बनेगा, जब सभी सेक्टरों में इनोवेशन कल्चर पैदा होगा. सिर्फ देसी मैन्यूफैक्चरिंग पर जोर देने का नतीजा यह भी हो सकता है कि कंपनियां तकनीक और उपकरण विदेशों से आयात करें और एक ट्रेडिंग फर्म बनकर रह जाएं. ये चेतावनी उन इंडस्ट्री दिग्गजों ने दी है, जो कई देसी-विदेशी कंपनियों की कमान संभाल चुके हैं.

केसीसी इंस्टिट्यूट ऑफ लीगल एंड हायर एजुकेशन (KCCILHE) और नाइजीरिया की नाइल यूनिवर्सिटी के सहयोग से शनिवार को आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उद्योग और अकादमिक जगत की कई हस्तियों ने अपने विचार रखे. 'वोकल फॉर लोकल बनाम भारत की वैश्विक आकांक्षाएं' विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए डिक्शन टेक्नॉलजीज इंडिया लिमिटेड के प्रेसिडेंट और सीओओ कमलेश मिश्रा ने कहा ' कुछ साल पहले तक देश में माइक्रोमैक्स, लावा, कार्बन जैसे देसी मोबाइल फोन छाए हुए थे, लेकिन आज उनका नामोनिशान नहीं है और उनकी जगह देश के मोबाइल बाजार पर शाओमी, विवो, रियल्मी, ओप्पो जैसे चाइनीज ब्रांड का कब्जा हो चुका है. देसी कंपनियां बाजार से बाहर इसलिए हो गईं कि उन्होंने इनोवेट करने की कोशिश नहीं की. उनका एक ही फॉर्मूला था, चीन से सीपीयू लाकर भारत में बेचना. उन्होंने अपना कुछ नया करने की कोशिश नहीं की. नतीजा सामने है. आत्म निर्भर भारत के लिए जरूरी है कि हर क्षेत्र में इनोवेशन कल्चर विकसित हो. उन्होंने कहा कि भारत में आज इसरो ही एक ऐसा संगठन है, जहां कुछ इनोवेशन देखने को मिला है और उसके नतीजे भी दिख रहे हैं कि भारत दूसरे देशों के सैटेलाइट लॉन्च कर रहा है. उन्होंने फ्लिपकार्ट, ओला जैसी कंपनियों का उदाहरण देते हुए कहा कि एक नया विचार सब कुछ बदल सकता है.

ऑसिफाई इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ अमिताभ तिवारी ने कहा कि हमें विदेशी ब्रांड्स के प्रति ललक की मानसिकता से बाहर आना होगा. वोकल फॉर लोकल या मेक इन इंडिया का विचार पहली बार नहीं आया है. गांधी जी के जमाने में भी स्वदेशी की बात होती थी. लेकिन क्या कारण है कि आज भी हमें हर वो चीज लुभाती है, जो विदेशी हो. उन्होंने आत्म निर्भर भारत अभियान की सराहना करते हुए कहा कि पहली बार सरकार ने देशप्रेम की भावना को आगे रखकर स्वदेशी की दिशा में कदम उठाया है. पहले सरकारें इसे लेकर प्रोएक्टिव नहीं थीं. उन्होंने बताया कि मई 2020 में गलवान संघर्ष के बाद उनके जैसे कई कॉरपोरेट दिग्गजों ने चाइनीज कंपनियों में ऊंचा पद और बड़ा पैकेज छोड़कर देसी कंपनियां जॉइन की. यह जज्बा अब इनोवेशन, डिजाइन, उत्पाद के मामले में भी लोगों को दिखाना होगा.

नाइजीरिया की नाइल यूनिवर्सिटी के डिप्टी वाइस चांसलर (डॉ.) दिलीप कुमार ने आर्थिक आंकड़ों के हवाले से मजबूत होते भारत की तस्वीर पेश की. उन्होंने कहा कि जीडीपी ग्रोथ, विदेशी मुद्रा भंडार और प्रति व्यक्ति आय में लगातार आ रही मजबूती के चलते ही आज वैश्विक मुद्रा कोष बार-बार भारत की तारीफ कर रहा है. आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में है. उन्होंने कहा कि वोकल फॉर लोकल का मतलब यह नहीं कि हम दुनिया से कट जाएं. वैश्विक धारा के साथ ही हमें देसी प्रगति करनी होगी. इसके लिए उन्होंने 'वोकल फॉर ग्लोकल' जैसे नारे की जरूरत बताई.  

ब्रातिस्लावा यूनिवर्सिटी (स्लोवाकिया) की अर्थशास्त्री प्रो. एनेटा कैपलानोवा ने भी उभरते भारत की आकांक्षाओं और उम्मीदों की सार्थकता बताई और कहा कि सभी क्षेत्र में सतत विकास के साथ वह अपना लक्ष्य हासिल कर सकता है. 

इंस्टिट्यूट ऑफ लीगल एंड हायर एजुकेशन (केसीसीआईएलएचई) की डायरेक्टर प्रो. (डॉ.) भावना अग्रवाल ने अतिथियों और वक्ताओं का स्वागत करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्देश्यों और मूल भावना पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सभी सेक्टर्स और स्टेकहोल्डर्स को आगे आना होगा. सम्मेलन में देश के कई शहरों और विश्वविद्यालयों के विद्वानों और शोध छात्रों ने अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए. अधिकांश विद्वानों ने प्रधानमंत्री के वोकल फॉर लोकल और आत्म निर्भर भारत मिशन को महत्वाकांक्षी और राष्ट्र निर्माण की दिशा में बड़ा कदम बताते हुए उसके अनुरूप उठाए जा सकने वाले कदमों की चर्चा की.

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