
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने डीयू कुलपति को पत्र लिखकर डीयू की अकादमिक परिषद की बैठक के एजेंडे में विचार के लिए प्रस्तावित सांस्थानिक विकास योजना पर तीखे सवाल उठाए हैं। डूटा की ओर से डी यू वी सी को लिखे पत्र में कहा गया कि संस्था के विकास के लिए कोई योजना बनाने में कोई बुराई नहीं है लेकिन डी यू एक सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थान है जो देश के विभिन्न जाति, पंथ और धर्म से संबंधित विविध पृष्ठभूमि वाले छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहा है, इसलिए जरूरी है कि केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण वित्तपोषित विश्वविद्यालय के चरित्र से समझौता न किया जाए और न ही विकास का बोझ सामाजिक रूप से वंचित वर्ग, गरीब या मध्यम वर्ग पर डाला जाए।
पत्र में हेफा लोन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा गया है कि एचईएफए ऋणों के माध्यम से विकास विश्वविद्यालयों की फीस वृद्धि के लिए मजबूर करना स्वीकार्य नहीं है। सभी विकास कार्य सरकारी वित्त पोषण से किए जाने चाहिए। डूटा की ओर से जारी पत्र में इस योजना को लेकर सभी हितधारकों से व्यापक चर्चा करने पर जोर देते हुए कहा गया कि कोई भी विकास योजना तभी सार्थक और सफल होगी जो सभी हितधारकों को शामिल करके तैयार और क्रियान्वित की जाए। इसलिए डीयू प्रशासन द्वारा तैयार और प्रस्तुत आईडीपी दस्तावेज को शिक्षकों, छात्रों, कर्मचारियों और आम जनता के बड़े वर्ग से और अधिक इनपुट की आवश्यकता है। इसलिए, इस दस्तावेज को पहले विभिन्न हितधारकों की टिप्पणियों और सुझावों के लिए भेजा जाना आवश्यक है।
पत्र में डूटा ने डी यू वी सी का ध्यान शिक्षक भर्ती ,एन एफ एस , बैकलॉग , एन ई पी और दिल्ली सरकार वित्त पोषित 12 कॉलेजों में चल रहे आर्थिक संकट की ओर दिलाते हुए हुए इनके समाधान की मांग की है।पत्र में कहा गया है कि सभी शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों को भरे बिना और मजबूत प्रवेश नीति के बिना किसी संस्थान का भौतिक विकास बहुत कम अर्थ रखता है। डीयू को यूजी और पीजी प्रवेश और हाल ही में शिक्षण पदों पर एनएफएस के मद्देनजर अपने नियुक्ति मानदंड और प्रवेश पद्धति को बदलने की आवश्यकता है। डीयू को आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों का पालन करते हुए सभी स्तरों पर सभी रिक्त पदों को भरने और सभी बैकलॉग और कमी वाले पदों को भरने की आवश्यकता है।
दिल्ली सरकार वित्त पोषित 12 डीयू कॉलेज में फंड कटौती और नियुक्ति नहीं होने से ये कॉलेज कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इनकी स्थिति को दयनीय बना दिया है और उनके अस्तित्व का सवाल विश्वविद्यालय के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। डूटा ने डी यू प्रशासन से अपील करते हुए कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन का पहला कर्तव्य इन कॉलेजों को बचाना है और फिर विकास योजना पर विचार करना है। इसके अलावा, डीयू के घटक कॉलेजों को शामिल किए बिना किसी भी विकास योजना के सफल होने की संभावना कम ही है। पत्र में एनईपी 2020 की संरचना और कार्यान्वयन से संबंधित कई मुद्दे हैं, इसलिए, विश्वविद्यालय को पहले इसकी पूरी समीक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
डूटा इस मुद्दे बैठक आयोजित कर विस्तृत प्रतिक्रिया प्रस्तुत करेगा।
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