देश-दुनिया में आज हर जगह नारी सशक्तिकरण की बात हो रही है। महिलाओं की आर्थिक भागीदारी इसी विमर्श का एक अहम हिस्सा है। जब भी महिलाओं की आर्थिक भागीदारी की बात आती है महिलाओं पर ये सवाल उठने लगते हैं कि नौकरी या बिजनेस तो कर लोगी लेकिन घर और बच्चों की जिम्मेदारी कैसे संभालोगी? दिल्ली की कुंज यादव ने इस सवाल का बख़ूबी जवाब दिया है। क्या है वो जवाब, आईये जानते हैं.
वो कहते हैं न- जहां चाह, वहाँ राह! तीन बच्चों की मां और एक सफ़ल बिज़नेस वुमेन कुंज यादव ने ये साबित कर दिखाया कि घर- परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारी हो या बिज़नेस के उतार- चढ़ाव से निबटने की तैयारी, महिलाएँ दोनों ही भूमिकाएँ बखूबी निभा सकती हैं। इसके लिए जेंडर और उम्र कोई मायने नहीं रखती है। जो असल में मायने रखता है, वो है आपकी विल पावर और टाइम मैनेजमेंट।
एडु अडवाइस से बातचीत के दौरान कुंज यादव ने बताया कि मात्र 14 साल की उम्र में ही वो अपने पिता के बिजनेस के साथ जुड़ गईं। कुंज के पिता ने छोटी उम्र में ही कुंज की काबिलियत को पहचान लिया और उन्हें बिजनेस की बारीकियाँ सिखाने लगे। अपनी मेहनत और लगन की बदौलत सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ती गईं कुंज यादव आज यदु कॉर्पोरेशन की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। यही नहीं, कुंज नेटबॉल की बेहतरीन प्लेयर भी हैं। कुंज बताती हैं कि पढ़ाई करने और बिज़नेस में पिता का हाथ बटाने के बीच समय निकालकर वो रेगुलर स्टेडियम प्रेक्टिस करने जाती थीं। वो नेटबॉल की नेशनल लेवल की चैम्पियन भी रह चुकी हैं।
1990 में बनी यदु कॉर्पोरेशन आज रियल स्टेट, हॉस्पिटैलिटी, शुगर और पावर समेत कई इंडस्ट्रीज़ में सक्रिय है। कुंज यादव इस कॉर्पोरेशन से साल 2012 में जुड़ीं। जुड़ने के साथ ही कुंज ने कॉर्पोरेशन की ब्रांडिंग और मार्केटिंग के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर काम करना शुरू किया और पैकेजिंग से लेकर क्वालिटी में सुधार किया। इन्हीं प्रयासों के चलते यदु कॉर्पोरेशन आज एक ब्रान्ड के तौर पर स्थापित हो चुका है। एक वर्किंग मदर और जेंडर सेंसिटिव महिला होने के कारण कुंज यादव ने एचआर पॉलिसी में डायवर्सिटी पर विशेष ध्यान दिया। जिसका नतीजा यह है कि यदु कॉर्पोरेशन के वर्कफोर्स में आज लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा महिलाओं का है। एचआर, मार्केटिंग एंड सेल्स के अलावा ग़ैर-पारम्परिक विभागों जैसे एड्मिनिस्ट्रेशन और फ़ाइनैन्स डिपार्टेमेंट में भी महिलाओं की सक्रिय भागीदारी दिखती है।
शादी के बाद बिजनेस के सफर में आए तमाम संघर्ष के सवाल पर कुंज ने बताया कि संचार कुंजी है। उन्होंने अपने पति और परिवार से अपनी महत्वाकांक्षाओं के बारे में खुलकर बात की, जिन्होंने न सिर्फ़ उनकी बात समझी बल्कि उन्हें पूरा सहयोग भी दिया। कुंज की मानें तो आज वो जो कुछ भी हैं उसमें एक बहुत बड़ी भूमिका उनके पिता, पति और ससुर की है। कुंज के पिता ने हमेशा एक बात समझाई कि किसी भी काम का जेंडर से कोई लेना-देना नहीं होता है। पिता के बाद कुंज के पति कुणाल यादव ने भी हमेशा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। यहाँ तक कि कुंज के बच्चे भी उन्हें काम करने के लिए मोटिवेट करते हैं।
फिलहाल यदु कॉर्पोरेशन के तहत कई स्कूल भी चलाए जा रहे हैं। इन स्कूलों के ज़रिए यदु कॉर्पोरेशन की एक कोशिश आर्थिक रूप से पिछड़े लेकिन प्रतिभाशाली बच्चों को कम खर्च में बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराना है। कुंज का ऐसा मानना है कि आने वाले समय में इन स्कूलों से बड़े-बड़े अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, कलाकार और पत्रकार निकलेंगे। इसके अलावा यदु कॉर्पोरेशन की तरफ से कई गरीब और अनाथ बच्चियों की शादियां भी करवाई जा चुकी हैं। इस तरह के सामाजिक कार्यों में कुंज यादव ने न सिर्फ़ बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं बल्कि बेहद सक्रिय भूमिका निभाती हैं। बता दें कि कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित स्कूलों में अमूमन 2000 बच्चे पढ़ते हैं जिनमें से लगभग 500 बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह से मुफ्त में कराई जाती है।
महिलाओं के काम-काज और मोटिवेशन के सवाल पर कुंज यादव कहती हैं कि महिलाओं का काम करना ही आज के वक्त की मांग हैं। महिलाओं के अंदर उतनी ताकत होती है कि वे परिवार के साथ बाहर का काम भी कर सकती हैं। बस जरूरत अपने आप को पहचानने और अपने हुनर को निखारने की है। कुंज का मानना है कि दुनिया में आगे बढ़ने और खुद को साबित करने का हक सिर्फ पुरुषों का नहीं है, महिलाओं को भी तरक़्क़ी करने का उतना ही हक है। कुंज कहती हैं कि “आज के दौर की महिलाएं पहले से कहीं ज्यादा समझदार हैं, चाहे घर का काम हो, प्रेगनेंसी हो, नौकरी हो या बिजनेस, महिलाएं पहले से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से चीजों को देख और समझ रही हैं। लेकिन इन सब बातों के बीच ये देखना दुखद है कि अभी भी बहुत सी महिलाएं अपने मन की बात नहीं कह पाती हैं। पुरानी कहावत है कि जब तक बच्चा रोता नहीं तब माँ भी दूध नहीं पिलाती। इसी तरह महिलाओं को समझना होगा कि- खुलकर अपनी बात कहे बग़ैर परिवार, सहकर्मी अथवा अन्य लोगों से हमें समझने की उम्मीद करना बेमानी है। मेरा मानना है कि जिस दिन देश की तमाम महिलाएं खुलकर अपनी बात कहना सीख जाएंगी उस दिन उनके लिए चीजें और आसान हो जाएंगी।”
कुंज यादव की ये बात काफ़ी हद तक सही है। वह खुद इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। शायद इसीलिए आज जरूरत है कि महिलाएं उन सभी विषयों- जो उनकी पर्सनल और प्रोफ़ेशनल ज़िंदगी को प्रभावित करते हैं, उन पर खुल कर अपनी बात रखें और इसकी शुरूआत उन्हें घर से ही करनी होगी।
Click Here for More Latest News