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अखंड भारत के संकल्प की सिद्धी का समय

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से बीती 20 फरवरी को जम्मू-कश्मीर की धरती से देशभर के लिए 32 हजार करोड़ से अधिक की 220 परियोजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण किया है उससे संदेश स्पष्ट है कि सरकार एक भारत, अखंड भारत, विकसित भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है।

शैलेन्द्र

नई दिल्ली :- 

अखंड भारत समस्त भारतवासियों का अनवरत संकल्प है, यह हमारी श्रृद्धा, राष्ट्रभक्ति व विश्वास  की  एक साधना है । अखंड भारत ही हमारी राष्ट्रीय व सांस्कृतिक एकता का पर्याय है । काराकोरम से कन्याकुमारी तक, अटक से कटक तक,  कामरूप से कच्छ तक की पुण्यभूमि अनादि काल से ही समस्त नागरिकों के मन में आत्मीयता व मूलभूत ऐतिहासिक एकता का प्रतिपादन करती रही है। हमारे पूर्वज ब्रम्हा, ययाति, राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरुनानक ने इस अखंड भारत को एक सूत्र में पिरोया है । परन्तु अनेक कालखंडो में बाह्य शक्तियों द्वारा इस एकता को खंडित करने के अनेकों प्रयास किए गए, लेकिन भारत की  जीवनधारा के अन्तः प्रवाह में राष्ट्रीय चेतना सदैव ही अखंडता के लिए प्रयत्नशील रही है। वस्तुतः अपने भूमि, जन और संस्कृति की एकात्मकता की अनुभूति तब तक संभव नहीं है जब तक सनातन राष्ट्र अपने अखंड स्वरूप में प्राप्त नहीं हो जाता । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से बीती 20 फरवरी को जम्मू-कश्मीर की धरती से देशभर के लिए 32 हजार करोड़ से अधिक की 220 परियोजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण किया है उससे संदेश स्पष्ट है कि सरकार एक भारत, अखंड भारत, विकसित भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है।

इतिहास की बात करें तो अनेकों बार विदेशी आक्रान्ताओं ने हमे पराधीन करने का प्रयास किया पर हमने कभी पराधीनता स्वीकार नहीं की और हमारा संघर्ष सदैव जारी रहा । भारत को खंडित करने का एक प्रयास अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा 15 अगस्त 1947 में किया गया, जब भारत की भूमि, तीर्थ व भावना के साथ साथ लाखों की संख्या में लोगों का कत्ल किया गया और भारत विभाजन की क्रूर विभीषिका से गुजरा । इतना ही नहीं भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर के लगभग आधे भाग पर पाकिस्तान ने अवैध कब्ज़ा कर लिया और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर अनेक आक्रमण करता रहा है। 1947 के पश्चात जम्मू कश्मीर में अलगाव व आतंकवाद पाकिस्तान द्वारा पोषित रहा । इसके अतिरिक्त तत्कालीन राजनीतिक शक्तियों की जिद, अज्ञानता व लापरवाही के कारण अनुच्छेद 35 ए व 370 स्वयं में ही राजनीतिक एकीकरण व सामाजिक न्याय के विरूद्ध जाते रहे । इस अलगाववाद  व आतंकवाद के विरूद्ध राष्ट्रवादी शक्तियां वर्ष 1947 से ही संघर्ष कर  रही थी । डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नारा बुलंद किया था  ‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेंगे । पंडित प्रेम नाथ डोगरा की अगुवाई में प्रजा परिषद् के रूप में राष्ट्रवादी आन्दोलन जम्मू कश्मीर में चल रहा था। इन प्रदर्शकारियों को खूब यातनाएं दी गयीं जिनकी मांग थी कि भारत का संविधान वहां पर लागू हो । श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान राष्ट्वादी शक्तियों के लिए प्रेरणा की तरह रहा जिसकी परिणति से एक आतंकवाद, पत्थरबाजी व अलगाववाद के विरूद्ध संघर्ष का एक चरण पूर्ण हुआ- जिसमे इक देश इक निशान इक विधान एक प्रधान हमने कर दिखाया है। अब आगे के लड़ाई अधिक्रांत क्षेत्रों की है। आज का जो भारतीय मानचित्र हमें दिखता है वास्तव में वह अपूर्ण मानचित्र है। पूर्ण मानचित्र व उसके एकीकरण के लिए हमारा संघर्ष सदैव बना रहा।

ऐसा नहीं कि एक भारत की परिकल्पना किसी एक विचारधारा विशेष के लोगों की इच्छा तक सीमित थी। इतिहास पर नजर डाले तो विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था यानी भारतीय संसद ने 22 फरवरी 1994 को एकमत से संकल्प पारित किया था कि जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अविभाज्य अंग रहा है और रहेगा तथा शेष भारत से पृथक करने के किसी भी प्रयास का सभी आवश्यक साधनों से विरोध एकजुटता के साथ किया जाएगा। भारत की एकता, प्रभुसत्ता और क्षेत्रीय अखंडता के विरुद्ध हर तरह के षडयंत्रों का प्रतिरोध करने की इच्छा शक्ति और क्षमता भारत में है। भारत की संसद मांग करती है कि पाकिस्तान को भारत के राज्य जम्मू कश्मीर के सभी क्षेत्र खाली कर देने चाहिए जिन्हें आक्रमण कर हथिया लिया गया है और यह संकल्प करती है कि भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास का डट कर मुक़ाबला किया जाएगा।

भारतीय संसद के इसी संकल्प की सिद्धी के लिए वर्ष 2014 में केंद्र में बनी नरेंद्र मोदी की सरकार राजनीतिक व वैचारिक स्पष्टता दिखाई। वर्तमान सरकार के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदाधिकारी पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू और कश्मीर व लद्दाख को लेकर अपना वक्तव्य दे चुके हैं।लेकिन सबसे आधिकारिक वक्तव्य गृहमंत्री अमित शाह ने 6 अगस्त 2019 को संसद में दिया था। गृहमंत्री के शब्दों में “जब मै जम्मू और कश्मीर के विषय में बात करता हूँ तो इसमें पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू और कश्मीर व अक्साईचिन शामिल है। इस क्षेत्र के लिए हम जीवन देने के लिए तैयार हैं” । रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री डॉ. एस. जयशंकर दोनों ने पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू और कश्मीर के बारे में इसी प्रकार के वक्तव्य अनेको बार दिया है, जो इस बात के संकेत है कि भारत अपने भूभाग के प्रति अपने संकल्प के लिए दृढ़ संकल्पित है। बीती 5 अगस्त 2019 को  जम्मू कश्मीर प्रान्त का पुनर्गठन करके दो नए केंद्र शासित प्रदेश- जम्मू कश्मीर व लद्दाख का निर्माण किया गया  है। इसी क्रम में भारत सरकार ने अक्टूबर 2019 में एक नवीन मानचित्र निर्गत किया है। जिसके अनुसार गिलगित बल्तिस्तान लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के लेह जिले के अंतर्गत  दर्शाया गया है। लेह क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सर्वाधिक बड़ा जिला है । यह दर्शाता है कि मौजूदा सरकार भारत की एकता को लेकर किस हद तक संकल्पबद्ध है और पाक के कब्जे वाले भारतीय भूभाग पर भारतीय संविधान के लागू होने का फैसला भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की शक्ति संरचना और भारत के सामर्थ्य पर निर्भर होगा।

                                 अवैध नियंत्रण में भारत भूमि

भारत में अधिमिलन के समय जम्मू-कश्मीर का क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग किलोमीटर था और जम्मू-कश्मीर रियासत के चार प्रमुख क्षेत्र थे- जम्मू, कश्मीर, लद्दाख व गिलगित । वर्तमान समय में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की लगभग 54.4 प्रतिशत भूमि (1 लाख 21 हजार वर्ग किमी) चीन और पाकिस्तान के अवैध नियंत्रण में है।

पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर (POJK)- इस भाग में जम्मू और कश्मीर क्षेत्र का मीरपुर मुज़फ़्फ़राबाद शामिल है, जिसका क्षेत्रफल  13,297 वर्ग किमी है। पाकिस्तान अप्रत्यक्ष रूप से इस भाग पर शासन करता है।

पाकिस्तान अधिक्रांत लद्दाख (POTL)- इस क्षेत्र में  गिलगित और बाल्टिस्तान शामिल हैं और POTL का कुल क्षेत्रफल लगभग 67,791 वर्ग किमी है। गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र अपने उत्तर-पूर्व में वर्तमान के चीनी तुर्किस्तान(शिनजियांग) प्रदेश को और पश्चिम में पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है।

चीन अधिक्रांत लद्दाख (COTL)- चीन के अवैध नियंत्रण में 42,685 वर्ग किमी की भूमि है जिसमें अक्साईचिन, मिनसर, शक्सगाम तथा रक्सम आदि घाटियाँ भी सम्मिलित हैं।

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