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“भारत की महानायिका हैं द्रौपदी” डॉ. सोनल मानसिंह

इस पुस्तक के माध्यम से पाठक एक ऐसी आत्मकथात्मक यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें एक कलाकार के आत्म-प्रकटीकरण के गहन क्षणों और अद्वितीय अनुभवों का दर्शन होता है।

नई दिल्ली।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए)के कलानिधि प्रभाग ने डॉ. सोनल मानसिंह की नवीनतम पुस्तक ‘ए ज़िगज़ैग माइंड’ पर अर्थपूर्ण चर्चा का आयोजन किया। आईजीएनसीए द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक डॉ. सोनल मानसिंह के जीवन और कला अनुभवों का एक मनोरम संग्रह है। यह पुस्तक उनकी जीवन यात्रा को खूबसूरती से दर्शाती है। इस पुस्तक के माध्यम से पाठक एक ऐसी आत्मकथात्मक यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें एक कलाकार के आत्म-प्रकटीकरण के गहन क्षणों और अद्वितीय अनुभवों का दर्शन होता है।
पुस्तक चर्चा में आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी और दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर व लेखक डॉ. मालाश्री लाल ने गुरु, सांस्कृतिक विदुषी, विचारक और राज्यसभा सांसद, पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह के साथ रोचक बातचीत की। इससे पूर्व, आईजीएनसीए के कला निधि विभाग के प्रमुख व डीन (प्रशासन) प्रो. रमेश चंद्र गौर ने अतिथियों और आगंतुकों का स्वागत किया तथा विषय का परिचय प्रस्तुत किया। 
चर्चा के दौरान डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा, “यह उस समय की यात्रा करने जैसा है, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।” उन्होंने कहा कि यह सारा लेखन कभी-कभी बहुत तीव्र, सुसंगत और सटीक विचारों को लिखने के साथ शुरू हुआ और उन्हें हैरानी होती है कि यह सब उनके मस्तिष्क में किस तरह आया! उन्होंने बताया कि जब वह स्कूल में थीं, तब उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था और तब से लेकर अब तक बहुत समय बीत चुका है। अब ये कविताओं की डायरी कहां है, उन्हें नहीं पता, क्योंकि उनके जीवन में बहुत अधिक आपाधापी थी। इस पुस्तक की रचना प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह सब वास्तव में तब शुरू हुआ, जब उन्होंने एक अखबार के लिए पाक्षिक कॉलम लिखना शुरू किया था, जो लंबे समय तक चला। वे लेख प्रकाशित हुए, इसी क्रम में उन्होंने विनोद के साथ कहा कि अगर इन लेखों को किताब की शक्ल में लाया जाए, तो तीन-चार मोटी पुस्तकें (ए ज़िगज़ैग माइंड जैसी) बन जाएंगी और उनमें कई ऐसी चीजें भी सामने आएंगी कि लोगों को हैरानी होगी कि ये सोनल मानसिंह है! 
सोनल मानसिंह ने उल्लेख किया कि कैसे पौराणिक इतिहास कला के साथ जुड़ा हुआ है, जो व्यक्ति को इसमें तल्लीन होने के लिए आमंत्रित-सा करता है। चर्चा में पैनलिस्टों ने राधा, सीता और द्रौपदी के विविध पहलुओं पर दिलचस्प बातचीत की। डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास की सीता और वाल्मीकि रामायण की सीता में फर्क है, क्योंकि तुलसीदास जिस क्षेत्र और सांस्कृतिक परिवेश के थे, उसका प्रभाव रामचरितमानस की सीता के चित्रण में दिखाई देता है। अपने नृत्य में द्रौपदी के सशक्त और अलग तरह के चित्रण के संदर्भ में उन्होंने कहा कि द्रौपदी ‘भारत की महानायिका’ हैं। उनका व्यक्तित्व बहुत ही विविधता से भरा है। एक तरफ उनमें दृढ़संकल्प है, अग्नि का तेज है, स्वाभिमान है, तो करुणा भी है। द्रौपदी ने अपने बालों का अभिषेक दुःशासन के रक्त से करने की प्रतिज्ञा की थी और इस प्रतिज्ञा को पूर्ण भी किया, तो वहीं दूसरी ओर अपने बच्चों की हत्या करने वाले अश्वत्थामा को क्षमा भी कर दिया। व्यक्तित्व में ऐसी 360 डिग्री विविधता द्रौपदी के अतिरिक्त शायद ही कहीं देखने को मिले। उन्होंने कहा कि कृष्ण की एकमात्र सखी थीं द्रौपदी, जिनकी करुणा भरी पुकार पर कृष्ण सबकुछ छोड़ दौड़े-दौड़े चले आए। 
प्रोफेसर मालाश्री लाल ने टिप्पणी की, कि पुस्तक 'ए ज़िगज़ैग माइंड' प्रेरणादायक ज्ञान से परिपूर्ण है, जो भारतीय ज्ञान के पुनर्जागरण को प्रदर्शित करती है। उन्होंने समकालीन भारत में विविध मूल्यों और ज्ञान के समागम पर प्रकाश डाला, जो यहां के लोगों के लिए गर्व का स्रोत है, यह पुस्तक ज्ञान की इस संपदा में महत्वपूर्ण योगदान देती है। प्रोफेसर लाल ने कहा कि डॉ. सोनल मानसिंह को भारतीय पौराणिक कथाओं का विशद् ज्ञान है और इसके लिए वह प्रशंसा की पात्र है।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने बातचीत में कहा कि पौराणिक पात्रों पर सोनल जी का दृष्टिकोण नारीवाद की यूरोपीय धारणा से अलग है। अपनी प्रस्तुतियों में पौराणिक पात्रों का उनका चित्रण भारतीय संस्कृत के सार और प्राचीन भारतीय समाज में महिलाओं की सम्मानित स्थिति को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी कहा कि यह पुस्तक ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ को भी प्रतिबिंबित करती है।
यह पुस्तक छब्बीस अध्यायों में विभाजित है, जिसमें ‘गुरु शिष्य परंपरा’, ‘मेकिंग ऑफ ए क्लासिकल डांसर’, ‘क्रिएटिविटी इन डांस’, ‘यमुना- विटनेस टू कृष्ण लीला’, ‘सप्त नदी’, ‘राधा’, ‘द्रौपदी’, ‘रामायण ऐज नरेटेड बाई तुलसीदास’ जैसे विभिन्न विषयों पर गहनता से प्रकाश डाला गया है। इसमें डॉ. सोनल मानसिंह ने अपने जीवन अनुभवों को बहुत अर्थपूर्ण तरीके से बताया है और अपनी अब तक की यात्रा के आधार पर ‘नाट्य’, ‘नृत्य’ और ‘नृत्त’ पर एक अनूठा दृष्टिकोण पेश किया है। ‘नाट्य’ रस पर आधारित हैं, ‘नृत्य’ भाव पर आधारित है और ‘नृत्त’ ताल व लय पर आधारित है। इस पुस्तक के पृष्ठों के माध्यम से डॉ. मानसिंह की दृढ़ता, सदाशयता और भारतीय कला के प्रति उनका समर्पण पाठकों के समक्ष बहुत स्पष्टता से प्रकट होता है।

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