* वर्तमान में डीयू में है 4 हजार से अधिक अतिथि शिक्षक
* डूटा व एसी /ईसी में वोट का अधिकार नहीं है अतिथि शिक्षकों को
* अतिथि शिक्षकों की नियुक्तियों में बैठता है सलेक्शन कमेटी का बोर्ड़ ।
नई दिल्ली। फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस (शिक्षक संगठन ) के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी ) के चेयरमैन प्रोफेसर एम.जगदीश कुमार को पत्र लिखकर मांग की है कि विश्वविद्यालय के विभागों व संबद्ध कॉलेजों , एसओएल , नॉन कॉलेजिएट वीमेन एजुकेशन बोर्ड में पढ़ा रहे 4 हजार से अधिक अतिथि शिक्षकों को भी सहायक प्रोफेसर स्थायी नियुक्तियों के समय वरीयता दिए जाने की मांग की है । बता दें कि पिछले दो साल से दिल्ली विश्वविद्यालय ने एडहॉक पदों को समाप्त कर दिया है , उसके स्थान पर अब अतिथि शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं । उन्होंने बताया है कि जिस तरह से डीयू के कॉलेजों में स्थायी नियुक्ति के समय एडहॉक टीचर्स के शिक्षण अनुभव को जोड़ा जा रहा है उसी तरह से अतिथि शिक्षकों को भी नियुक्ति व प्रमोशन में वरीयता दिए जाने की मांग दोहराई है । उनका कहना है कि स्थायी नियुक्तियों के समय अतिथि शिक्षकों के शिक्षण अनुभव को कोई भी शिक्षण संस्थान/ कॉलेज नहीं मानते है जबकि उनकी योग्यता किसी भी स्तर पर कम नहीं है। उनका यह भी कहना है कि यूजीसी ने 2019 के बाद अतिथि शिक्षकों की नियुक्तियों में स्थायी नियुक्ति की भांति सलेक्शन कमेटी बिठाने संबंधी अधिसूचना जारी की हुई है और उसी के तहत अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है ।
फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने यूजीसी चेयरमैन को लिखे पत्र में उन्हें बताया है कि अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति में नए नियमों के अनुसार एडहॉक टीचर्स से ज्यादा पेचीदा हैं । नए नियमों के अनुसार अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति के समय दो विषय विशेषज्ञ ( सब्जेक्ट्स एक्सपर्ट ) ऑब्जर्वर ,वाइस चांसलर नॉमिनी , विभाग प्रभारी और प्रिंसिपल सलेक्शन कमेटी में बैठते हैं जबकि एडहॉक टीचर्स की नियुक्ति में कॉलेज प्रिंसिपल, विभाग प्रभारी , वरिष्ठ शिक्षक व ऑब्जर्वर ही नियुक्ति करते हैं । उन्होंने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में दो तरह की गेस्ट फैकल्टी है एक जो प्रिंसिपल के द्वारा नियुक्ति होती है जिसे अधिकतम 25 हजार रुपये दिए जा सकते हैं और दूसरे वह जिसमें यूजीसी द्वारा जनवरी 2019 के बाद आई अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति संबंधी गाइडलाइंस जिसके अंतर्गत 50 हजार रुपये तक दिए जा सकते हैं ।
डॉ. सुमन ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में दोनों तरह के अतिथि शिक्षक है जबकि स्कूल ऑफ़ लर्निंग ( एसओएल ) व नॉन कॉलेजिएट वीमेंस एजुकेशन बोर्ड ( एनसीवेब ) में पढ़ाने वाले अतिथि शिक्षकों को एक सेमेस्टर में 25 दिन दिए जाते हैं जिसमें प्रति दिन 2 क्लासेज लेनी पड़ती है ,वहीं दूसरे सेमेस्टर में भी यहीं नियम है । लेकिन एसओएल में एक सेमेस्टर में 20 क्लासेज दी जाती है । इन दोनों स्थानों पर यूजीसी के नियमानुसार 1500 रुपये प्रति लेक्चर के हिसाब से मानदेय दिया जाता है । उन्होंने बताया है कि इस समय दिल्ली विश्वविद्यालय में 4000 अतिथि शिक्षक है जो एसओएल ,नॉन कॉलेजिएट वीमेंस बोर्ड व रेगुलर कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं । डॉ. सुमन के अनुसार नॉन कॉलेजिएट में लगभग 1300 शिक्षक ( 26 सेंटर ) एसओएल में लगभग 1500 शिक्षक व रेगुलर कॉलेजों में लगभग -1300 अतिथि शिक्षक है । इसके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में इग्नू की क्लासेज भी लगती है जिसमें अतिथि शिक्षकों की भांति एकेडेमिक काउंसलर रखे जाते हैं ।
डॉ. सुमन ने बताया है कि इन अतिथि शिक्षकों की योग्यता व एडहॉक शिक्षकों की योग्यता में कोई अंतर नहीं है बल्कि यूजीसी द्वारा 2019 के बाद नियुक्ति संबंधी जो प्रक्रिया है वह ज्यादा कठिन है । एडहॉक शिक्षकों की नियुक्तियों के लिए भी एम.ए. ,एम.कॉम.एमएससी नेट / जेआरएफ होना अनिवार्य है तो वहीं अतिथि शिक्षकों के लिए । एम. फिल/ पीएचडी अतिरिक्त योग्यता है । दोनों को बराबर कार्य करना पड़ता है एडहॉक शिक्षकों की भांति उन्हें भी ,एग्जामिनेशन ड्यूटी ,परीक्षा मूल्यांकन ,असाइनमेंट चेक करना , उनके अंक चढ़ाना आदि कार्य करने पड़ते हैं । एसओएल व नॉन कॉलेजिएट की कक्षाएं शनिवार और रविवार के अलावा जब रेगुलर कॉलेजों की छुट्टियां होती है तब 26 सेंटर पर कक्षाएं लगती है । यहाँ पर अधिकार विभिन्न विभागों से पीएचडी कर रहे शोधार्थियों को अतिथि शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाता है ।
डॉ.सुमन ने यह भी बताया है और चिंता जाहिर की है कि इन अतिथि शिक्षकों को डूटा व विद्वत परिषद व कार्यकारी परिषद ( एसी /ईसी ) में वोट डालने का अधिकार नहीं है । उनका कहना है कि उन अतिथि शिक्षकों को तो कम से कम वोट का अधिकार दिया जाना चाहिए जो यूजीसी गाइडलाइंस --2019 के अंतर्गत नियुक्त किया जाता है । साथ ही उनका शिक्षण अनुभव भी नियुक्ति व पदोन्नति में जोड़ा जाए। डॉ. सुमन ने यूजीसी से यह भी मांग की है कि वह नियुक्ति और पदोन्नति के समय अतिथि शिक्षकों को शिक्षण अनुभव ( टीचिंग एक्सपीरियंस ) का लाभ देते हुए नियुक्ति की जाए । उनका कहना है कि अतिथि शिक्षकों को शिक्षण अनुभव का लाभ देने के लिए यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय को गाइडलाइंस में बदलाव करना होगा क्योंकि वर्तमान नियमों के तहत अतिथि शिक्षकों का शिक्षण अनुभव को वरीयता नहीं दी जाती । उन्होंने अतिथि शिक्षकों को वरीयता दिए जाने की मांग की है और कहा है कि यूजीसी अपनी गाइडलाइंस में बदलाव कर इन्हें एडहॉक शिक्षकों की भांति सुविधाएं मुहैया कराई जाए ताकि सहायक प्रोफेसर की स्थायी नियुक्ति के समय उसे लाभ मिल सकें ।
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