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भारत विभाजन की त्रासदी से सबक लेना जरूरीः शेखावत

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र न्यास ने 14 अगस्त को नई दिल्ली के भारत मंडपम में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का आयोजन किया


नई दिल्ली, 14 अगस्त : भारत का बंटवारा एक ऐसी त्रासदी है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता तो मिली, लेकिन विभाजन की कीमत पर। लाखों लोग मारे गए, करोड़ो बेघर हुए। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2021 को लालकिले की प्राचीर से हर वर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ घोषणा की थी, ताकि विभाजन पीड़ितों के दुख को, उनकी आहुति को देश की नई पीढ़ी समझ और महसूस कर सके। स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले भारत के विभाजन को याद करने का उद्देश्य विश्व की उस भीषणतम त्रासदी से सबक लेना, नयी पीढी को अवगत करवाना और देश को सचेत रखना है।

                   इसी कड़ी में इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र न्यास ने 14 अगस्त को नई दिल्ली के भारत मंडपम में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का आयोजन किया।
इस कार्यक्रम में केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत मुख्य अतिथि थे। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान (स्वतंत्र प्रभार) एवं प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, वाणिज्य एवं उद्योग तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री श्री जितिन प्रसाद, केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्यमंत्री नीमूबेन बांभनिया, सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग और कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री श्री हर्ष मल्होत्रा, केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री वी. सोमन्ना और इंदौर के सांसद श्री शंकर लालवाणी भी उपस्थित थे।
                          इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी द्वारा निर्देशित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘ए न्यू पोस्टबॉक्सः टेल्स फ्रॉम द पार्टीशन’ का टीजर केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने जारी किया। यह फिल्म दूरदर्शन और संसद टीवी पर प्रसारित की जाएगी। इसके पूर्व, विभाजन की त्रासदी पर आधारित एक पुस्तक ‘विभाजन की कहानियां’ का भी लोकार्पण मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। पुस्तक का सम्पादन आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी और राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद् के निदेशक प्रो. रवि प्रकाश टेकचंदाणी ने किया है।
                      इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने बंटवारे की पीड़ा और उसके कारणों पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि विभाजन की विभीषिका को याद किया जाना जरूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां इसे महसूस कर सकें। स्मरण के पीछे कोई राजनीतिक भाव नहीं है, बल्कि भाव यह है कि हम इससे सीख लेकर बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें। इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक भारत के विभाजन की त्रासदी को विभिन्न राजनीतिक कारणों से इतिहास में वह स्थान नहीं मिला, जो उसे मिलना चाहिए था। करोड़ों लोगों की पीड़ा को, उनके विस्थापन को हाशिये पर डाल दिया गया। केन्द्रीय संस्कृति मंत्री ने एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी कही कि इतिहास पराये व्यक्तियों के लिए बस एक संदर्भ बिंदु या संदर्भ अवधि (टर्म ऑफ रेफरेंस) भर होता है, लेकिन स्टेकहोल्डर्स (हितधारकों) के लिए भविष्य के निर्माण की पाठशाला होता है। अपने उद्बोधन के प्रारम्भ में श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने उपस्थित जनसमूह से क्षमा मांगी कि कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह को शामिल होना था, लेकिन वह अपरिहार्य कारणों से नहीं नहीं आ पाए।

                      डॉ. सुकांत मजूमदार ने बंगाल विभाजन की पृष्ठभूमि और पीड़ा को याद किया और 1905 में अंग्रेजों द्वारा किए गए ‘बंग-भंग’ के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया कि उनके दादा भी पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से विस्थापित होकर पश्चिम बंगाल आए। उनके पिताजी के छोटे भाई उस त्रासदी के समय परिवार से बिछड़ गए और फिर कभी पता नहीं चला कि उनका क्या हुआ। श्री शंकर लालवाणी ने सिंध से विस्थापित होने वाले लोगों की पीड़ा को बयां किया और कहा कि बंगाल और पंजाब का एक हिस्सा तो भारत में आया, लेकिन सिंध का कोई भी हिस्सा भारत में नहीं आया।
इस पूरे कार्यक्रम का संयोजन आईजीएनसीए के जनपद सम्पदा के विभागाध्यक्ष प्रो. के. अनिल कुमार ने किया। कार्यक्रम में विभाजन की पीड़ा झेलने वाले लोगों के परिवारों के सदस्य, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रा, युवा और समाज के सभी वर्गों के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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